Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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समाप्त किया हैं। जीवतत्त्वप्रदीपिका कटक्रवृत्ति के अनुसरणपर लिखी गयी है। अत: उसका रचनाकाल वि०सं० १४१६के पश्चात् होना चाहिये। पण्डित टोडरमलजीने संस्कृत-जीवतत्त्वप्रदीपिकाके आधारपर हिन्दी-टीकाका निर्माण वि०सं० १८१८में किया है । अत्तः इन दोनों समय-सीमाओंके बीच में ही जीवतत्त्वप्रदीपिकाका रचनाकाल सम्मान है। ___टीकाकी प्रशस्तिमें कर्नाटप्रायदेशके स्वामी मल्लिभूपालका उल्लेख आया है। डॉ० ए० एन० उपाध्येने संस्कृत-जीवतत्त्वप्रदीपिकाका रचनाकाल ई० सन्की १६वीं शताब्दी बतलाया है । डॉ० उपाध्येने लिखा है-'जैन साहित्यके उद्धरणोंपर दृष्टि डालने। मुझे मालूम होता है कि मल्लिनामका एक शासक कुछ जैन लेखकोंके साथ प्रायः सम्पर्कको प्राप्त है। शुभचन्द्र-गविलीक अनुसार विजयकीति ( ई० सन् १६वीं शताब्दीके प्रारंभमें । मल्लिभपालके द्वारा सम्मानित हुआ था। विजयकीत्तिका समकालीन होनेसे उस मल्लिभूपालको १६वीं शताब्दीके प्रारम्भमें रखा जा सकता है। उसके स्थान और धर्म विषयका हमें कोई परिचय ज्ञात नहीं। दूसरे, विशालकात्तिके शिष्य विद्यानन्दिके विषयमें कहा जाता है कि ये मल्लिरायके द्वारा पूजे गये थे और ये विद्यानन्दि ई० सन् १५४१में दिवंगत हुए हैं । इससे भी मालूम होता है कि १६वीं शताब्दीके प्रारम्भमै एक मल्लिभूपाल था। हुम्मचका शिलालेख इस विषयको और भी स्पष्ट कर देता है। उसमें बताया गया है कि यह राजा जो विद्यानन्दिके सम्पर्क में था, सालुव मल्लिराय कहलाता था। यह उल्लेख हमें मात्र परम्परागत किंवदन्तियोंसे हटाकर ऐतिहासिक आधारपर ले आता है। सालुब नरेशोंने कनारा जिलेके एक भागपर राज्य किया है और वे जैनधर्मको मानते थे। मल्लिभूपाल मल्लिरायका संस्कृत किया हुआ रूप है । और मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि नेमिन्द्र सालुवसयका उल्लेख कर रहे हैं। यद्यपि उन्होंने उनके वंशका उल्लेख नहीं किया है। १५३० ई०के लेखमें उल्लिखित होनेसे हम सालुव मल्लिरायको १६वीं शताब्दी के प्रथम चरणमें रख सकते हैं। और उसके विद्यानन्दि तथा विजयंकीत्ति विषयक सम्पकके साथ भी अच्छी तरह संगत जान पड़ता है। इस तरह नेमिचन्द्र के सालुव मल्लिरायक समकालीन होनेसे हम संस्कृत-जीवतत्त्वप्रदीपिकाको रचनाको ईसाकी १६वीं शताब्दी के प्रारम्भकी ठहरा सकते हैं।"
डॉ० उपाध्येके उक्त कथनसे स्पष्ट है कि टीकाकार नेमिचन्द्रका समय १६ वीं शती है। अब यह विचारणीय है कि प्रशस्ति और मंगलाचरणमें जिन ज्ञान१. अनेकान्त वर्ष ४, किरण १, पृ० १२० ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ४१७