Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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है । यह टीका कृत ही महत्वपूर्ण है । इसमें गम्भीर और कठिन विषयको अत्यन्त सरलतापूर्वक स्पष्ट किया गया है। सैद्धान्तिक विषयोंकी चर्चाके साथ ही साथ गणित संख्यात, असंख्यान, अनन्त, श्रेणि, जगत्प्रतर, घनलोक आदि या कपन है, उसे मनानियों द्वारा अंकसंदृष्टिके रूपमें स्पष्ट किया गया है | रामरन गूढ़ और gha fवपयोंका स्पष्टीकरण सम्यक्तया किया है । जीव और कवि प्रत्येक चर्चित विषयका सैद्धान्तिक रूपमें सुन्दर विवेचन किया है। टीकाके अध्ययन से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि टीकाकारको विषय, भाषा, गणित, सिद्धान्त, आचार आदिका स्पष्ट ज्ञान था ।
कलकी यह विशेषता है कि इसमें न तो अनावश्यक विस्तार है और अत्यधिक संकोच हो । विषयके विवेचनमें पर्याप्त सन्तुलन रखा गया है ।
इस टीका संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओक शताधिक उद्धरण प्रस्तुत किये गये । इन्होने मगन्तभद्राचार्य आप्तमीमांसा, विद्यानन्दके आप्तपरीक्षा, नामदेव के मस्तिक, नमिचन्द्रके त्रिलोकसार और आगाधरके अनगारधर्मात प्रभृति प्रयास अपने विपयकी पुष्टि के लिए उद्धरण दिये हैं। टीकामें बनिवृपभ, भूतवली, समन्तभद्र, भट्टाकलंक, नेमिचन्द्र, माधवचन्द्र, अभयचन्द्र और कंगवर्णी आदि ग्रन्थकारोंक नामोंका भी निर्देश किया है ।
यह राज्य है कि यह संस्कृत टीका न होती, तो पं० टोडरमलजी गोम्मटसारका रहस्योद्घाटन नहीं कर पाते। केशववर्णीकी कर्णाटक वृत्तिका आश्रय लिया गया है।
मुनि महनन्दि
भुनि महनन्दिभट्टारक वीरचन्दके शिष्य थे । ये अपने युग अत्यन्त प्रतिष्ठित साहित्यकार थे । इनके द्वारा विरचित 'बारहखड़ी दोहा' या 'पाहुड दोहा ' ग्रन्थ प्राप्त हैं | इसमें ३३३ दहे हैं । इन्होंने ग्रन्थके आदिमं अपने गुरुका नाम उल्लेख किया है
बारह विउणा जिण नवमि किय वारह अक्खरकक्क । मह्यंदिण भवियायण हो, णिसुणहु श्रिरमण थक्क || भत्र दुक्खह निव्विणएण, वीरचन्द सिस्से | भवियह पडिनोहण कथा, दोहा कव्वमिसेण || उपलब्ध पाण्डुलिपिके अन्त में निम्नलिखित ग्रन्थ-प्रशस्ति पायी जाती है" संवत् १६०२ वर्षे वैशाख सुदि १० तिथी रविवासरे उत्तराफाल्गुनक्षत्रे । राजाधिराज साहि आलम राये | नगर चंपावतीमध्ये श्रीपार्श्वनाथचैत्यालये ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषाचार्य: ४१०