Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 420
________________ विमलकीतिको प्रशंसा की गयी है और उनके शिष्य यश:कीर्ति भी प्रशंसनीय माने गये हैं। मंजाउ तस्न मीनो चिवटो सिरिबिमलइत्ति विवखाओ। विमलपनि खडिया धलिया धूणिय गयणाययले ।। जगत्ति ग्राम पपडो परामयम्जुअलपडियभन्धयणो । ममिण जणदुलहं तेण हहिय समुरियं ।। अगनोग मकाःकोनि कामासंघ, माथुरगच्छको पुष्करगण शाखाके सर्वाधिक यशस्वी, उच्चकोटिके. साहित्यकार, कठिन तपस्वी, प्राचीन जीर्ण-शीर्ण ग्रन्थोंके उद्धारक, गयी पीढ़ी के साहित्यकारों के प्रेरक, उगदेष्टा एवं कला-साहित्य सम्बन्धी विभिन्न प्रवृत्तियोंके मर्मज्ञ विद्वान थे। इनकी प्रतिभाग राजन्यवर्ग, श्रेष्ठिवर्ग एवं सामान्य जन-गमह प्रभावित था। भविष्यदत्ताञ्चमीकथावी प्रशस्तिमें इन्हें गणकीतिका शिल्य कहा गया है___ "संवत् १४८६ वर्षे आपाढदि ७ गुरुदिने गोपाचलदुर्गे राजाडूंगरसिंह राज्यप्रवर्त्तमाने श्रोकाष्ठासंघे माथुरगच्छे पुष्करगणं आचार्यथीसहस्रकीर्तिदेवा: तत्पट्टे आचार्यश्रीगुणकीर्तिदेवाः तच्छिष्य श्रीयशःकीर्तिदेवाः तत्पट्टे आचार्य श्रीगुणकीर्तिदेवा: तच्छिय श्रीयश:कीर्तिदेवाः तेन निजज्ञानावरणीकर्मक्षयार्थ इदं भविष्यदत्तपञ्चमीकमा लिन्त्रापितम्।" महाकवि रइयून इन्हे अगन गुरुको रूपमं स्मरण किया है । उन्होंने लिखा है-- ........" | सिरि गुकित्तिसुरि पायउजणि । तह शिहामण सिहर परिट्ठिउ । मुत्तिरमणि राराणीव-ठिउ || सुजसयमर बागि दिवासउँ । सिरि जकित्ति णाम दिव्वासउँ । -सम्मइ० १०१३०११-१३ तह पुणु सुतवतावपियंगो। भन्बकमलसंबोहपयंगो। णिच्चान्भासियमययणअंगो। वंदिवि शिरि जकित्ति अरांगो॥ -सम्मतगुण शश६-७ पुणु तह पट्टि पदर जसभायणु । सिरि जसकित्ति भञ्च सुहदायणु ।। -महेसर० १।३।५ अर्थात् गुणकीर्त्तिके सिंहासन पर स्थित, मुक्तिरूपी रमणीसे अनुराग करनेके लिए उत्कंठित, प्रातःकालीन सूर्यके समान तेजोन्मुख, यशस्वी, दिव्य नाम धारी और तपायुक्त यशःकोर्ति हुए। ये भव्यजन-कमलोंको सम्बोधित १. भट्टारक सम्प्रदाय, शोलापुर, लेखांक ५५७ । ४०८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा

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