Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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रचनाएँ
आचार्ययशः कीर्त्तिकी चार रचनाएँ प्राप्त हैं
१. पाण्डवपुराण ( अपभ्रंश ) | २. हरिवशपुराण ( अपभ्रंश ) ३. जिण रतिकहा ( अपभ्रंश ) 1
४. रविवयका | अपभ्रंश }
१. पाण्डवपुराण - इस ग्रन्थ में २४ सन्धियाँ हैं । इस ग्रन्थकी रचना मुवाकि शाह के राज्यकालमें साधुवील्हा के पुत्र हेमराजकी प्रेरणासे की गयी है । हेमराज योगिनीपुर के निवासी और अग्रवालवंशीय थे । ग्रन्थ में हेमराजकी प्रशंसा करते हुए बतलाया है कि ये सत्यवादी, व्यवसनरहित, जिनपूजक, र स्त्रीत्यागो, उदार और परोपकारी हैं। इनकी माताका नाम घेताही और पिताका नाम साधुवील्हा तथा धर्मपत्नीका नाम गंधा था। हेमराजका परिवार धर्मात्मा और कर्त्तव्यपरायण था ।
इस ग्रन्थ में पाण्डव और कौरवोंके साथ श्रीकृष्ण का चरित भी अंकित किया गया है । रचनाकी भाषाशैली प्रौढ़ है।
२ हरिवंशपुराण- इस रचनाका प्रणयन हिसारनिवासी अग्रवाल गर्भगोत्रीयसाहूदिवड्ढा के अनुरोध से किया गया है । ग्रन्थकर्त्ताने प्रशस्ति में बतलाया है कि योगिनीपुर में पं० डूंगरसिंह और दिवड्ढा निवास करते थे | दिवड्ढा सुदर्शन के समान शुद्धमनवाले, कर्मपरायण, दैनिक षट्कर्मका आचरण करनेवाले, दयालु, एकादश प्रतिमाओं के अनुष्ठाता एवं ज्ञानी थे । इनकी प्रेरणा प्राप्त कर यशः कीर्त्तिने हरिवंशपुराणकी अपभ्रंश भाषामें रचना की। इसमें १३ सन्चियाँ और २७१ कड़वक हैं। हरिवंशको कथा अंकित है । ३. जिणरतिकहा- इस लघुकाय काव्य में महादीरकी निर्वाणरात्रि कार्तिककृष्णा चतुर्दशीकी रात्रिका काव्यात्मक चित्रण है ।
४. रविवयकहा या आदित्यवार कथा- इसमें रविव्रतकथा अंकित है । छोटी-सी यह रचना भी उपादेय है ।
शुभकीर्त्ति
शुभकीर्ति नामके अनेक आचार्य हुए हैं। इनमें एक शुभकीर्त्तिवादीन्द्र विशाल कीर्त्तिके पट्टधर थे । इनके सम्बन्धमें बताया है
I
"तपो महात्मा शुभकोर्त्तिदेवः ।
एकान्त राद्युन्नतपोविधानाद्धातेव सन्मार्गविधेर्विधाने
पट्टावलिशुभचन्द्रः
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोधकाचार्य: ४११