Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 409
________________ बीतने पर उसे त्याग देते हैं। कुछ मुनिशरीर में दोष उत्पन्न होनेसे लज्जावश वस्त्रको ग्रहण कर लेते हैं । यह व्याख्या भगवतीआराधनामें कहे हुए अभिप्रायसे अपवादरूप जाननी चाहिये । पर भगवती आराधनामें इस तरहका कोई विधान नहीं है, उसके टीकाकार अपराजितसूरिने अपनी विजयोदयाटोकrमें आचेलar आदि दश कल्पोंका निरूपण करनेवाली ४२१वीं गाथाकी व्याख्या करते हुए आचारांग आदि सूत्रोंमें पाये जानेवाले कुछ वाक्योंके आधारपर यह माना है कि यदि भिक्षुका शरीरावयव सदोष हो, अथवा वह परीषह सहन करनेमें असमर्थ हो, तो वह वस्त्र ग्रहण कर सकता है । अपराजितसूरिने तो समन्वयार्थ इस प्रकारकी व्याख्या की है, पर श्रुतसागरसूरि दिगम्बर होते हुए, क्यों इस प्रकारकी भूल कर गये ? षट्प्राभूतटीका - आचार्य श्रुतसागरसूरिने षट्प्राभृतकी टीका प्रारम्भ करते हुए लिखा है "अथ श्रीविद्यानन्दिभट्टारक पटाभरणभूतश्री मल्लिभूषणभट्टारकाणामादेशादध्येषणावशाद् बहुगः प्रार्थनावशात् कलिकालसर्वज्ञविरुदावलीविराजमानाः श्रीसद्धर्मोपदेशकुशला निजात्मस्वरूपप्राप्ति पञ्चपरमेष्ठिचरणान् प्रार्थयन्तः सर्वजगदुपकारिण उत्तमक्षमाप्रधानतपो रत्नसंभूषितहृदयस्थला भव्यजनजनकतुल्याः श्रीश्रुतसागरसूरयः श्री कुन्दकुन्दाचार्यविरचितषट्प्राभृतग्रन्थं टोकयन्तः स्वरुचिविरचितसदृदृष्टयः ।" अर्थात् कलिकालसर्वज्ञ आदि विरुदावलिसे सुशोभित, श्रीसम्पन्न, आधर्म के उपदेशमें कुशल, पञ्चपरमेष्ठी के चरणों को प्रार्थना से आत्मस्वरूपके ध्याता, सर्वजगतके उपकार करनेवाले उत्तमक्षमादि तपोंसे विभूषित, सम्यग्दर्शनयुक्त और भव्य जीवोंके लिए पिताके समान सुखदायक श्रुतसागरसूरि श्रीविद्यानन्दि भट्टारक सम्बन्धी पट्टके अलंकारस्वरूप श्रीमल्लि भूषणभट्टारककी आज्ञासे, प्रेरणासे और अनेक जीवोंकी प्रार्थनासे श्री कुन्दकुन्दाचार्य द्वारा विरचित 'षट्प्राभृत' ग्रन्थकी टीका करनेके लिये प्रवृत्त हुए हैं । इस टोकामें भी 'तयाचोक्तं' कहकर अनेक स्थानोंके उद्धरण संकलित किये हैं। कुन्दकुन्दस्वामोके मूलवचनोंका व्याख्यान सरल और संक्षेपरूपमें किया है । यद्यपि इस टीकामें श्रुतसागरीवृत्ति जैसी गम्भीरता या प्रौढ़ता नहीं है, तो भी विषयको स्पष्ट करने की क्षमता इस टीकामें है । टोकाकी शैली बहुत ही सरल, स्वच्छ और स्पष्ट है । दर्शन, चरित्र, सूत्र, बोध, भाव और मोक्ष इन छह प्राभृतोंका व्याख्यान श्रुतसागरसूरिने किया । टोका केवल भावोंके स्पष्टीकरण प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापाषकाचार्य : ३९७

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