Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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यों यह ग्रन्थ पर्याप्त प्राचीन है, इसमें पांच प्रकरण हैं और इस पर भाष्य एवं संस्कृतटीकाएं लिखी गयी हैं। इस पंचसंग्रहके संस्कृत-टोकाकार भट्टारक सुमतिकीति हैं। टीकाके आरम्भमें गद्यभाग है और अन्त में पद्योंमें प्रशस्ति दो गयी है। प्रशास्तके पद्य निम्नप्रकार हैं
श्रीमलसंवेऽजनि नन्दिसंधो वरो बलात्कारगणप्रसिद्धः । श्रीकुंदकुंदो वरसूरिबर्यो बभी बुधो भारतिगन्छसारे ॥ तदन्वये देवमनीन्द्रवंद्यः श्रीपदमनन्दी जिनधर्मनंदी। ततो हि जातो दिविजेन्द्रकोतिविद्या[दि]नंदी बरधर्ममूर्तिः ॥ तदीयपट्टे नपमाननीयो मल्लयादिभूषो मुनिवंदनोयः । ततो हि जातो वरधर्मधर्ता लक्षम्यादिचन्द्रो बहुशिष्यकर्ता । पंचाचाररतो नित्यं सूरिसद्गुणधारकः । लक्ष्मीचंद्गुरुस्वामी
भट्टारकशिरोमणिः ।। दुर्वारदुर्वादिकपर्वतानां वज्रायमानो वरवीरचन्द्रः ।
तदन्वये सूरिवरप्रधानो ज्ञानादिभूषो गणिगच्छराजः ।। ३. धर्मपरीक्षारास—यह हिन्दी रचना है। इसका उल्लेख पण्डित परमानन्दजी शास्त्रीने भी अपने प्रशस्ति संग्रहकी भूमिकामें किया है। इस रासका रचनाकाल वि० सं० १६२५ है । बताया है
संवत् सोल पंचवीसमे, मार्गसिर सुदि बीज वार ।
रास रुड़ो रलियामणो, पूर्ण किधो छ सार ।। इस धर्मपरीक्षारासमें प्रसिद्ध ग्रन्थ धर्मपरीक्षाका सारभाग निबद्ध किया गया है।
४. बसन्तविलास-तीर्थंकर नेमिनाथका विवाह-सन्दर्भ अत्यन्तमर्म स्पर्शी घटना है। इस घटनाको आधार मानकर अनेक जैनकवियोंने काव्योंको रचना की है। प्रस्तुत वसन्तविलासमें ३२ छन्द हैं और उक्त सन्दर्भको लेकर रासरूप में इसकी रचना की गयी है । भाषा मुजराती प्रभावित राजस्थानी है।
५. जिल्ह्यावन्तसंवाद-इस लघुकाय रचनामें ११ पद्य हैं। जिह्वा और दांतोंके बीच होनेवाले विवादका काव्यात्मक वर्णन किया है। भाषा सरल और गुजराती प्रभावित राजस्थानी है ।
६ जिनवरस्वामीविनती-इस स्तवनमें २३ पद्य हैं। और जिनेन्द्र भगवान्की स्तुति, वर्णित है । कविने बताया है कि इन्द्रियाएं उसीकी सफल हैं, ३८० : सीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य-परम्परा