Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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५. तत्त्वसा रहा ६. अष्टानिकगीत जनाओं
कार्तिकेयानुपेक्षारीका, सज्जनचित्तबल्लभ, अम्बिकाकल्प, गणघरवलयपूजा, चन्दनषष्ठीव्रतपूजा, तेरहद्वीपपूजा, पंचकल्याणक पूजा, पुष्पाञ्जलिव्रतपूजा, साद्ध द्वयद्वोपपूजा एवं सिद्धचक्रपूजा आदि संवत् १६०८ के पश्चात् अर्थात् पाण्डवपुराणके बादको कृत्तियाँ है ।
७. क्षेत्रपालगीत
१. करकण्डुचरित -- करकण्डुका जीवन इस काव्यकी मुख्य कथावस्तु है और यह १५ सर्गों में विभक्त है । वि० सं० १६११ में जवाच्छपुरके आदिनाथचैत्यालय में इस ग्रन्थ की रचना पूर्ण हुई है। इस ग्रन्थ के सहायक शुभचन्द्रके प्रमुख शिष्य सकलभूषण भट्टारक थे । ग्रन्थकी अन्तिम प्रशस्ति निम्न प्रकार है
श्रीमूलसंधे कृति नदिसंघे गच्छे बलात्कार इदं चरित्रं । पूजाफलेद्ध करकण्डुराज्ञो भट्टारकश्री शुभचन्द्रसूरिः ॥ न्द्याष्टे विक्रमत्तः शते समहते चैकादशाब्दाधिके । भाद्रे मासि समुज्वले युगतिथौ बजे जाचाछपुरे । श्रीमच्छ्री वृषभेश्वरस्य सदने चक्रे चरित्रं त्विदं । राज्ञः श्रीशुभचन्द्रसूरियतिपश्चंपाधिपस्याद् घ. व्रं ॥ श्रीमत्सकलभूषेण पुराणे
पाण्डवे कृतं तदाकारस्वसिद्धये ॥
तेनाऽत्र
साहाय येन
२. अध्यात्मतरंगिणी - इस ग्रन्थका आधार आचार्य अमृतचन्द्र के समयसारके कलश हैं । इस आध्यात्मिक कृतिमें निश्चय और व्यवहार नयकी अपेक्षा रचना एक प्रकारसे समयसारपर आवृत १५७३ है |
आत्मतत्त्वका वर्णन किया गया है। यह टीका है । इसका रचनाकाल वि० सं०
३. कार्तिकेयानुप्रेक्षाटीका - प्राकृत भाषामें लिखित स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षाकी यह टीका है । इस ग्रन्थको आचार्य शुभचन्द्रको संस्कृतटीकाने विशेष लोकप्रिय बनाया है । इस ग्रन्थकी रचना वि० सं० १६०० माघ शुक्ला के एकादशीके दिन हिसार नगर में हुई है। ग्रन्थकी प्रशस्तिमें बताया है
श्रीमत् विक्रमभूपतेः परमिते वर्षे शते षोडशे, माघे मासिदशाप्रवह्निमहिते ख्याते दशम्यां तिथो । श्रीमह्रीमहीसार-सार नगरे चैत्यालये श्रीपुरोः । श्रीमी शुभचन्द्रदेवविहिता टीका सदा नन्दतु ॥
३६६ : सीर्थंकर महावीर और उनकी वाचार्य-परम्परा