Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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आचार्य थे । इनका उल्लेख वि०सं० १२२० के एक अभिलेखमें पाया जाता है। इनके सधर्मी प्रभाचन्द्र थे तथा उनके शिष्य कुलभूषणके शिष्य माघनन्दिका सम्बन्ध कोल्हापुरसे था। __चौथे पद्मनन्दि बे हैं, जो नवकीतिके शिष्य और प्रभाचन्द्र के सहधर्मी थे, जिनका उल्लेख वि० सं० १:३८, १२४२ ६६ के
क माता है। इनकी उपाधि 'मन्त्रवादिवर' पायी जाती है | बहुत सम्भव है कि ये तृतीय और चतुर्थ पद्मनन्दि एक ही हों। तृतीय पद्मनन्दिको भी मन्त्रवादि कहा गया है ।
पंचम पद्मनन्दि वीरनन्दिके प्रशिष्य तथा रामनन्दिके शिष्य थे जिनका उल्लेख १२वीं शतीके एक अभिलेखमें मिलता है।
छठे पद्मनन्दि वे हैं, जिन्होंने अपने गुरु शुभचन्द्रदेवकी स्मृतिम लेख लिखवाया था | शुभचन्द्रदेवका वि०सं० १३७०में स्वर्गवास हुआ था। इनके दो शिष्य थे। इन्हींमें एक पद्मनन्दि थे । __ सातवें पद्मनन्दिका उल्लेख वि०सं० १३६० के एक अभिलेखमें आया है । इसमें बाहबलिमलधारिदेवके शिष्य पद्मनन्दि भट्टारकका निर्देश है, जिन्होंने वि०सं० १३६०में एक जैनमन्दिरका निर्माण कराया था। ___ आठवें पद्मनन्दि वे हैं, जो मूलसंघ कुन्दकुन्दान्वय देशीगण पुस्तकगच्छवर्ती वविद्यदेवके शिष्य पद्मनन्दि थे। इनका स्वर्गवास वि०सं० १३७३में हुआ था । इनका निर्देश श्रवणबेलगोलके अभिलेखसंख्या २६९ में आया है।
नौवें पद्मनन्दि वे हैं, जिनकी वि०सं० १४७१ के देवगढ़के अभिलेखमें प्रभाचन्द्रके शिष्यके रूपमें बड़ी प्रशंसा की गयी है।
जम्बूदीवपण्णत्तिके कर्ता पद्मनन्दि इन सबसे भिन्न हैं । ये अपनेको दीरनन्दिका प्रशिष्य और बलनन्दिका शिष्य बतलाते हैं। इन्होंने विजयगुरुके पास ग्रन्थोंका अध्ययन किया था । ग्रन्थ लिखनेका निमित्त बतलाते हुए निर्दिष्ट किया है कि राग-द्वेषसे रहित श्रुतसागरके पारगामी माघनन्दि आचार्य हुए। उनके शिष्य सिद्धान्त महासमुद्र में कलुषताको धो डालनेवाले गुणवान सकलचन्द्रगुरु हुए। उनके शिष्य निर्मल रत्नत्रयके धारक श्री नन्दिगुरु हुए और उन्हींके १. एपिग्राफी कर्नाटिका, भाग २, अभिलेख सं० ६४ । २. वही, भाग २, अभिलेख सं०६६ । ३. Jainism in South India, Page 280 तथा एपिमाफी कर्नाटिका, भाग ८,
अभि० सं० १४० और २३३ । ४. एपिग्राफी कर्नाटिका-अभिलेख ६५ तथा भूमिका, पृ० ८६ । १०८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा