Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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मन्दरपर्वतके दक्षिण पार्श्वभागमें देवकुरु क्षेत्र है। इसके पूवमें सौमनस तथा पश्चिममें विद्युत्भनामक गजदन्त पर्वत स्थित है। यह भी निषधपर्वत के उत्तरमें एक सहस्र योजन जाकर सीतोदा नदीके दोनों तटोंपर चित्र और विचित्र नामके दो यमक पर्वत हैं । इनके आगे ५०० सौ योजन जाकर सीता नदीके मध्य में पांच सरोवर हैं, जिनमें स्थित कमलभवनों पर निषधकुमारी, देवकुरुकुमारी, सुरकुमारी, सुलसा और विद्युत्प्रभाकुमारी देवियाँ निवास करती हैं। प्रत्येक सरोवरके पूर्व-पश्चिम दोनों पार्श्वभागोंमें १०-१० कञ्चन शैल हैं। यहाँ देवकुरु क्षेत्रमें मन्दरपर्वतकी उत्तर दिशामें सीतोदा नदीके पश्चिम तटपर स्वातिनामक शाल्मली वृक्ष स्थित है। इन देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्रों में युगलरूपसे उत्पन्न होनेवाले मनुष्य सीन पल्योपम प्रमाण आयुसे संयुक्त और तीन कोस ऊँचे होते हैं। तीन दिनके पश्चात् बेरके बराबर आहार ग्रहण करते हैं । ये मरकर नियमतः देवोंमें ही उत्पन्न होते हैं।
सप्तम उद्देश्यमें १५३ गाथाएँ हैं। इनमें विदेह क्षेत्रका वर्णन किया गया है। यह क्षेत्र निषध और नील कुलपवंतोंके बीच स्थित है। इसका विस्तार तेतीस हजार छ: सौ चौरासी पूर्णांक ४/१९ योजन प्रमाण है। बीच में सुमेरु पर्वत
और उससे संलग्न चार दिग्गज पर्वत हैं। इस कारण यह पूर्वविदेह और अपरविदेहरूप दो भागोंमें विभवत हो गया है। बीचमें सीता, सीतोदा महानदियोंके प्रवाहित होनेके कारण प्रत्येकके और दो-दो भाग हो गये हैं । उक्त चार भागोंमेंसे प्रत्येक भागके मध्यमें चार वक्षारपर्वत और उनके बीचमें तीन विभंगा नदियाँ हैं। इस कारण उनमेंसे प्रत्येकके भी आठ-आठ भाग हो गये हैं। इस तरह ये बत्तीस भाग ही बत्तीस विदेहके रूपमें स्थित हैं!
बीचोंबीच विजयापर्वत स्थित है । यहाँ रक्ता और रक्तोदा नामकी दो नदियां नीलपर्वतस्थ कुण्डोसे निकलकर विजयाईकी गुफाओंके भीतरसे जाती हुई सीता महानदीमें प्रविष्ट होती हैं। इस कारण उक्त कच्छा विदेह छ: खण्डोंमें विभक्त हो गया है। इनमें सीता नदीकी ओर बीचका आर्यस्खण्ड तथा शेष पांच म्लेच्छखण्ड हैं। आर्यखण्डके बीचमें क्षेमा नामकी नगरी स्थित है। इस नगरीका आयाम बारह योजन और विस्तार नौ योजन प्रमाण है। प्राकारवेष्टित उक्त नगरीके एक सहस्र गोपुर द्वार और पंचशत्तक खिड़की द्वार हैं। रय्याओंकी संख्या बारह हजार निर्दिष्ट की गयी है। यहाँ चक्रवर्तीका निवास है, जो बत्तीस हजार देशोंके अधिपतियोंका स्वामी होता है । इसके अधीन ९९ हजार द्रोणमुख, ४८ हजार पट्टण, २६ हजार नगर, पांच-पांच सौ ग्रामोसे संयुक्त चार हजार भडम्ब, चौतीस हजार करवट, सोलह हजार खेट, चौदह हजार संवाह, ५६ रत्नद्वीप और ९६ करोड़ ग्राम होते हैं। यहां क्षत्रिय, वैश्य ११६ : तीयंकर महावीर और उनको आचार्यपरम्परा