Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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जी प्रेमीने लिखा है--"अमितगतिने भी भगवती आराधनाके अन्तमें आराधना. की स्तुति करते हुए एक वसुनन्दि योगीका उल्लेख किया है
या निःशेषपरिग्रहेमदलने दुर्वारसिंहायते, या कुज्ञानतमोघटाविघटने चंद्राशुरोचीयते । या चिन्तामणिरेव चिन्तितफलः संयोजयन्ती जनान्,
सा वः श्रीवसुनन्दियोनिहिता पायातदाराबना॥ या सो ये वसुनन्दियोगी इन वसुनन्दिसे पूर्ववर्ती कोई दूसरे ही है और या फिर अमितगति और वसुनन्दि समकालीन हैं. जिससे वे एक दूसरेका उल्लेख कर सके हैं। यदि समकालीन हैं तो फिर वसुनन्दिको विक्रमको ११ वीं शतीका विद्वान होना चाहिये । अतएव श्रीप्रेमोजी और आचार्य युगलकिशोर मुख्तार इन दोनोंके मतसे वसुनन्दिका समय अमिततके पश्चात् और आशाधरके पूर्व होना चाहिये । हमारा अनुमान है कि इनका समय ई० सन्की ११ वीं शताब्दीका उत्तरार्ध सम्भव हैं । यतः वसुनन्दिके दादागुरु श्री नयनन्दिने विक्रम संवत् ११०० में 'सुदंसणचरिज' नामक ग्रन्थकी रचना की है। वसुनन्दि द्वारा दी गयी प्रशस्तिसे यह अनुमान होता है कि वसुनन्दि और नयनन्दि समकालीन हैं। उन दोनोंके समयमें कोई विशेष अन्तर नहीं है। श्री पण्डित होरालालजी सिद्धान्तशास्त्रीने लिखा है-"इतना तो निश्चित ही है कि नयनन्दिके शिष्य नेमिचन्द हुए और उनके शिष्य वसुनन्दि । वसुनन्दिने जिन शब्दोंमें अपने दादागुरुका प्रशंसापूर्वक उल्लेख किया है, उससे ऐसा अवश्य ध्वनित होता है कि वे उनके सामने विद्यमान रहे हैं । यदि यह अनुमान ठोक हो तो १२ वीं शताब्दीका प्रथम चरण वसुनन्दिका समय माना जा सकता है। यदि वे उनके सामने विद्यमान न भी रहे हों, तो भी प्रशिध्यके नाते वसुनन्दिका काल १२ बों शताब्दीका पूर्वार्ध ठहरता है" |"
श्री पण्डित हीरालालजी सिद्धान्तशास्त्रीके उक्त कथनसे भी यह स्पष्ट है कि वसुनन्दिका समय ई० सन्की ११वीं शताब्दीका अन्तिम चरण या १२वीं शताब्दीका प्रथम चरण सम्भव है। रखना परिचय ___ आचार्य वसुनन्दिके 'प्रतिष्ठासारसंग्रह', 'उपासकाचार' और 'मूलाचारकी आचारवृत्ति' ये तीन ग्रन्थ इनके हैं। आप्तमीमांसावृत्ति और जिनशतक १. बैन साहित्य और इतिहासमें उद्घृत, पृ. ४६३ । २. बसुनन्विश्रावकाणार, भारतीय ज्ञानपीठ काशी संस्करण, प्रस्तावना, १० १९ ।
२२६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा