Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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प्रथम अधिकार में ४९ पद्य हैं और २८ मूलगुणों का कथन आया है। द्वितीय अधिकार में ९४ पद्य हैं और मुनिके रहन-सहन आचार-विचार, क्रिया-कलाप आदिका वर्णन किया गया है। तृतीय अधिकार में ७५ पद्य हैं और दर्शनाचारका वर्णन आया है। चतुर्थ अधिकारमें ए७ पद्यों द्वारा नाफाका कर्म किया गया है । पंचम अधिकारमें १५१ पद्म हैं और चारित्राचारका विस्तारपूर्व निरूपण किया गया है । षष्ठ अधिकारमें १०२ पद्म हैं और तपाचारका वर्णन आया है । सप्तम अधिकारमें २६ पद्य हैं और बीर्याचारका कथन किया है । अष्टम अधिकार में ८४ पद्य हैं और अष्टशुद्धियों का विस्तारपूर्वक कथन आया है | नवम अधिकारमें स्वाध्याय पर्व कर्त्तव्य एवं समताका वर्णन आया है दशम अधिकारके ६३ पद्यों में ध्यानका वर्णन है। एकादश अधिकार में १९० पद्य हैं और जीव तथा कर्मीको प्ररूपणा की गयी है । द्वादश अधिकार में ३३ पद्य है और शीलका वर्णन आया है। इस प्रकार यह ग्रन्थ मुनियोंके आचार-विचारको अवगत करने के लिए उपादेय है । पंचाचार और बडावश्यकोंका मूलाचारके समान ही वर्णन आया है । व्यवहारचर्याके वर्णन में कतिपय नवीन बातें भी सम्मिलित को गया हैं, जिनका सम्बन्ध लोकाचार के साथ है।
आचार्य श्रुतमुनि
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श्री डॉ० ज्योतिप्रसादजीने १७ श्रुतमुनियोंका निर्देश किया है । पर हमारे अभीष्ट आचार्य श्रुतमुनि परमागमसार, त्रिभंगी, मार्गणा, आसव, सत्तात्रिच्छित्ति आदि ग्रन्थोंके रचयिता हैं । ये श्रुतमुनि मूलसंघ देशीगण पुस्तकगच्छ और कुन्दकुन्द आम्नायके आचार्य है । इनके अणुव्रतगुरु बालेन्दु या बालचन्द्र थे। महाव्रतगुरु अभय चन्द्र सिद्धान्तदेव एवं शास्त्रगुरू अभयसूरि और प्रभाचन्द्र थे | आस्रवत्रिभंगो के अन्त में अपने गुरु बालचन्द्रका जयघोष निम्न प्रकार किया है
इदि मग्गणासु. जोगो पच्चयभेदो मया समासेण | कहिदो सुदमुणिणा जो भावइ सो जाइ अप्पसुहं ॥ पयकमलजुयलविणमियविणेय जणकयसुपूयमाहप्पो । णिज्जियमयणमहावो सो बालिदो चिरं जयक ॥ आरा जैन सिद्धान्त भवनमें भावत्रिभंगीकी एक ताड़पत्रीय प्राचीन प्रति
१. जैन सन्देश, शोषक १० पृ० ३५८-६१ ।
२. मानव-त्रिभङ्गी, माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, ग्रन्यांक २०, पद्म ६१,६२, पु० २८३ ।
२७२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी माचार्य-परम्परा
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