Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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रविचन्द्रने यह समस्त ग्रन्थ आर्याछन्दोंमें लिखा है ।
अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती मूलसंघ, देशीयगण, पुस्तकगच्छ, कोण्डकुन्दान्वयको इंगलेश्वरी शाखाके श्रीममुदायमें माघनन्दि भट्टारक हुए हैं। इनके नेमिचन्द्र भट्टारक और अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ये दो शिष्य हुए हैं। अभयचन्द्र वालचन्द्र पण्डितके श्रुतगुरु थे । लिखा है___ "स्वस्ति श्रीमूलसंघदेशियगणपुस्तकगच्छकोण्डकुन्दान्वर्यादङ्गालेश्वरदबलिय श्रीसमुदायद-माधनन्दिभट्टारक-देवरप्रियशिष्यसं श्रीमन्नेमिचन्द्र-भट्टारक-देवसं श्रीमदभयचन्द्र-सिद्धान्तचक्रवतिगलं.....शकवर्ष ११९७ नेषभावसंवत्सरद भाद्रपद शुद्ध १२ बुधवारद......।''
हलेबीडके एक संस्कृत और कन्नड़ मिश्रित अभिलेख में अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके समाधिमरणका उल्लेख आया है । यह अभिलेख शक संवत् १२०१ (ई० सन् १९७९)का है। इसी स्थानके एक अन्य अभिलेखमें अभयचन्द्रके प्रिय शिष्य बालचन्द्र के समाधिमरणका निर्देश है । यह अभिलेख शक संवत् ११९७ (ई० सन् १२७४)का है ।
ईस्वी सन १२०५के हलेबाडके एक अन्य कन्नड भिलेखमें माघनन्दिकी गुरुपरम्परामें अभयनन्दि भट्टारकका नाम आया है। केलगेरके अभिलेग्न में भी अभयनन्दि उल्लिखित हैं । यह अभिलेख ईस्वी सन्की तेरहवीं शती के उत्तराद्धंका है।५
उपर्युक्त अभिलेखोंमें अभयचन्द्रका निर्देश आनेसे उनका समय ईस्वी सन् १३वीं शती सिद्ध होता है । बहुत संभव है कि ये १३वीं शतीके प्रारम्भमें हुए हों और ७९ वर्ष तक जीवित रहे हों। ___ रावन्दूरके संस्कृतमिश्रित कन्नड़ अभिलेखमें अभय चन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके शिष्य श्रुतिमुनि और उनके शिष्य प्रमेन्द्र के नाम आये हैं 1 भारंगीके एक शिलालेखमें बताया गया है कि राय राजगुरु मण्डलाचार्य महावादवादोश्वर १. जनशिलालेखसंग्रह भाग ३, अभिलेख ५१४ । २-३, वही, अभिलेख ५२४ । ४. जनशिलालेखसंग्रह, भाग ४, अभिलेख ३४२ । वही, अभिलेख, ३७६ । ५. जनशिलालेखसंग्रह, सतुर्थ भाग, अभि० सं० ३७६ । ६. जनशिलालेखसंग्रह, तृतीय भाग, अभि० सं० ५८४ ।
प्रबुदाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३१९