Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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भट्टारक लिखा है । साहित्यिक और पट्टावलियोंके निर्देशसे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि वि० सं० १५१८ में इन्हें भट्टारकपद प्राप्त हो चुका था। श्रीविद्याधर जोहरापूरकरने इनका समय वि० सं० १५२६-१५४० बतलाया है। जोहरापुरकरने लिखा है
"भीमसेनके पट्टशिष्य सोमकीति हुए। आपने सवत् १५३२ में वीरसेन सूरिके साथ एक शीतलनाथस्वामीको मूर्ति स्थापित की (ले० ६५१) | संवत् १५३६में गोढिलोमें यशोघरचरितकी रचना पूरी की (ले०६५२) तथा संवत १५४० में एक मर्ति स्थापित की (ले० ६५३), आपने सुल्तान पिरोजशाहके राज्य. कालमें पावागढ़में पद्मावतीकी कृपासे आकाशगमनका चमत्कार दिखलाया या (ले०२ ६५४) ।" ___ सोमकीतिने 'प्रद्युम्नचरित' और 'सप्तव्यसनकथा' की रचना क्रमशः वि० सं० १५३१ तथा १५२६में की है। अतएव सोमकीर्तिका समय १५२६के पूर्व होना चाहिये। जिन मूर्तिलेखोंमें इनका नामांकन मिलता है, वे मूतिलेख वि० सं० १५२६के पश्चात्के हैं । इन्होंने कुछ प्रतिष्ठाएं करायी थीं । एक मूर्तिलेखमें आया है
"संवत् १५२७ वर्षे वैशाख सुदि ५ गरी श्रीकाष्ठासंघे नंदतटगच्छे विद्या. गणे भट्टारक श्री सोमकीति आचार्य श्री वीरसेन युगवं प्रतिष्ठिता। नरसिंह राज्ञा भार्या सांपडिय गोत्रे........."लाखा भार्या मांक देल्हा भार्या मान् पुत्र बना सा० कान्हा देल्हा केन श्री आदिनाथ बिम्ब कारापिता ।"
अर्थात् वि० सं० १५२७ वैशाख सुदी पञ्चमीको इन्होंने वीरसेनके साथ नरसिंह एवं उसको भार्या सापड़ियाके द्वारा आदिनाथस्वामीकी मूर्ति प्रतिष्ठितकी थी। ___ वि० सं० १५३२ वीरसेनसूरिके साथ शीतलनाथ स्वामीको मूर्ति प्रतिष्ठितकी थी।
वि० सं० १५३६में अपने शिष्य वीरसेनसूरिके साथ हूँबड़ जातीय श्रावक भूपा भार्या राजके अनुरोधसे चौबीसी मूर्ति प्रतिष्ठित की थी।
वि० सं० १५४०में भी इन्होंने एक मूर्तिकी प्रतिष्ठा करायों थी। १. भट्रारक सम्प्रदाय, सोलापुर, पृ० सं० २९८ । २. भट्टारक सम्प्रदाय, पृ० २९३ । ३. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखाङ्क ६५१ । ४. वही, लेखाङ्क ६५३ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्मरापोषकाचार्य : ३४५
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