Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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इन सब तिथियोंसे स्पष्ट है कि भट्टारक सोमकोतिका जन्म वि० सं० १५००के आस-पास होना चाहिये । ऐतिहासिक पट्टावलीके अनुसार वि० सं० १५१८में इन्हें भट्टारकपद प्राप्त हो चुका था। इसके कार्यकालका ज्ञान वि० सं० १५४० पश्चात् नहीं होता है । इनकी अवस्था यदि ६० वर्षकी भी रही हो, तो इनका जन्म वि० सं० १४८०के लगभग आता है।
इनके शिष्योंमें यशः कीर्ति, वीरसेन और यशोधर ये तीन प्रधान हैं । इनकी मत्युके पश्चात् यशःकीति ही भट्टारक बने । सोमकीर्ति लब्धप्रतिाल विद्वान थे और इनकी वाणी में अमत जैसा प्रभाव था । रचनाएं
आचार्य सोमकोतिने संस्कृत एवं हिन्दी इन दोनों ही भाषाओं में ग्रन्थप्रणयन किया है। उपलब्ध रचनाएँ निम्न प्रकार हैसंसामा पहनाएँ
१. सप्तव्यसनकथा २. प्रद्युम्नचरित
३. यशोधरचरित राजस्थानी-रचनाएँ
१. गुर्वावलि २. यशोधररास ३. ऋषभनाथको धूलि ४. मल्लिगीत ५, आदिनाथविनती
सप्तव्यसनकथा--इस कथाग्रन्थमें सात सर्ग हैं। प्रथम सर्गमें धूतव्यसनकथा, द्वितीयमें स्तेयव्यसनकथा, तृतीयमें आखेटव्यसनकथा, चतुर्थमं वेश्याव्यसनकथा, पंचममें पररमनीसेवनव्यसनकथा, षष्ठमें मद्यसेवनव्यसनकथा
और सप्तममें मांससेबनव्यसनकथा लिखी गयी है। ग्रन्थ पद्यबद्ध है। अन्त में ग्रंथसमाप्तिकी तिथि अंकित है । बताया है
रसनयनसमेते वाणयुक्तेन चन्द्रे (१५२६) गतति सति नूनं विक्रमस्यैव काले प्रतिपदि धवलायां माघमासस्य सोमे
हरिभदिनमनोज्ञे निमितो ग्रन्थ एषः ।।७।। ३४६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आषार्य-परम्परा