Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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पवासी रविचन्द्र सिद्धान्तदेवका उल्लेख है। अतएव इनका समय ई० सन्की १२वीं शताब्दी का अन्तिम पाद या १३वीं शतीका प्रथम पाद संभव है ।
रविचन्द्रका आराधनासारसमुच्चय संस्कृतपद्योंमें लिखा गया उपलब्ध है । इस ग्रन्थमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकनारित्र और सम्यक्तप इन चारों आराधनाओंका वर्णन किया गया है । सम्यक्चारित्र आराधनामें अध्रुव, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म और बोधिदुर्लभ इन द्वादश अनुप्रेक्षाओंका भी वर्णन आया है। तपाराघनाका स्वरूपविश्लेषण करनेके पश्चात् आराध्य, आराधक, आराधनोपाय, आराधनाफलका भी चित्रण किया गया है। इस ग्रन्थमें दो प्राकृत और पांच संस्कृतके उद्धरण भी आये हैं। भाषा प्रांजल है । आचायने विषयका प्रतिपादन बहुत ही सुन्दररूपमें किया है। अनेक पद्योंपर कुन्दकुन्दका प्रभाव दिखलायी पड़ता है। सम्यग्दर्शनका महत्त्व बतलाते हुए लिखा है
वृक्षारः बापा भूलं नाय च पथः हाशिष्ठानम् । विज्ञानचरिततपसां तथा हि सम्यक्त्वमाधारः ॥३८॥ दर्शननष्टो नष्टो न तु नष्टो भवति चरणतो नष्टः ।। दर्शनमपरित्यजतां परिपतनं नास्ति संसारे ॥३९।
लोक्यस्य च लाभादर्शनलाभो भवेत्तरी श्रेष्ठः । लब्धमपि त्रैलोक्यं परिमितकाले यतश्च्यवते ॥४०॥ निर्वाणराज्यलक्ष्म्याः सम्यक्त्वं कठिकामत: प्राहुः ।
सम्यग्दर्शनमेव निमित्तमनन्ताव्यययसुखस्य ॥४१।। इन पद्योंपर कुन्दकुन्दको निम्नलिखित गाथाओंका स्पष्ट प्रभाव मालूम पड़ता है
दंसणमूलो धम्मो उवइट्टो जिणवरेहि सिस्साणं । तं सोऊण सकण्णे दसणहीणो ण वंदिव्चो 1॥ २॥ दसणभट्टा भट्टा दंसणभट्टस्स णस्थि णिब्वाणं। सिज्झति चरियभट्टा दसणभट्टा ण सिति ।। ३ ।। सम्मत्तरयणभट्टा जाणता बहुविहाई सत्थाई । आराहणाविरहिया भमति तत्येक तत्थेव ।। ४ ॥ सम्पत्तविरहियाणं सुद्ध वि उग्गं तवं चरंताणं ।
ण लहंति बोहिलाई अवि वाससहस्सकोठीहि ॥ ५॥ १. सम्पादक डॉ० ए० एन० उपाध्ये, बाराषनासारसमुच्चय १।३८-४१ । २. सणपाहु, गाथा २५ ।
३१८ : सीकर महाबीर और उमको बाचार्य-परम्परा