Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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गजा है और चेतनानामक रानी नायिका है। नायक मायारानीके वश होकर अपने शद्ध स्वरूपको भूल जाता है और कायानगरीय रहने लगता है। राजाका अमात्य मन है, जिसकी प्रवृत्ति और निवृत्ति नामक दो पलियाँ हैं । इस काव्यका प्रतिनायक मोह है। इस प्रकार मोह और परमहंसका संघर्ष दिखलाकर मोहका पराजय और परमहंमको विजय दिखलायी गयी है । यह प्रतीक रचना बड़ी सुन्दर है।
अजितनाथरास-इस रासग्रन्थमें द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथका जीवन वणित है। रचयिताने अजितनाथके जीवनकी प्रमुख घटनाओंको संक्षेपमें निबद्ध करनेका प्रयास किया है।
होलोरास--रचयिताने जेन मान्यताके आधारपर होलीकी कथा अषित की है। इस रासग्रन्थमें कुल १८८ पद्य हैं, तथा दोहा, चौपाई और वस्तुबन्ध छन्दोंका प्रयोग किया गया है। ___ धर्मपरोक्षारास- मनुष्यको पापप्रवृत्तियोंसे हटाकर शुभप्रवृत्तियोंको ओर अग्रसर करनेके लिए इस ग्रन्थकी रचना को गयी है। इस रायमें दो व्यक्तिगोंके कार्य-कलाप विशेष रूपसे अंकित है । एक व्यक्ति मनोवेग है, जो शद्धाचरण वाला है और दूसरा व्यक्ति पवनवेग है, जो सन्मार्गसे भ्रष्ट हो चुका है । इन दोनों व्यक्तियोंके आधारसे कथावस्तुका विकास हुआ है।
ज्येष्टजिलवररास- यह लघुकथाकाव्य है। बताया गया है कि सोमाने प्रतिज्ञा की थी कि वह प्रतिदिन एक कलश जल लेकर श्रीजीका अभिषेक करेगी। उसने विभिन्न परिस्थितियोंके आनेपर भी अपनी इस प्रतिज्ञाका निर्वाह किया है। कविने सोमाकी इस प्रतिज्ञाका बड़े ही उदात्त रूप में वर्णन किया है । पद्यसध्या १२० है।
श्रेणिकरास-इस कृतिमें मगधसम्राट् श्रेणिकका जीवनवत्त अंकित हैं। ये भगवान्के प्रमुख श्रोता थे। यह रासग्रन्थ दोहा और चौपाई छन्दमें लिखा गया है । भाषा सरल और सुन्दर है।
समकितमिथ्यातरास-इस लघुकाय रासमें सम्यक्त्व और मिथ्यात्वका चित्रण किया गया है । इसमें ७० पद्य हैं। पाखण्डमूढ़ता, देवमूढ़ता और गुरुमूढ़ताका अच्छा निराकरण किया गया है । फलप्राप्तिके हेतु किसी भी देवकी आगवना करना मिथ्यात्व है। सम्यक्ष्टिकी श्रद्धा दृढ़ और निर्मल होती है । बह ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप आत्माका ही श्रद्धान् करता है। उसकी दष्टि में अपने किये हुए कर्मोंका फल भोक्ता यह संसारी जीव है। अतएव किसी भी देवविशेषकी उपासना करनेसे पुत्र,धन आदिकी प्राप्ति संभव नहीं है।
३४२ : नीशंकर महादोर और उनको आचार्य-पगपग