Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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राज भरत और सुभद्राके प्रेममें विघ्न बनती है । सुभद्रा और भरतका प्रेमाकर्षण अर्निश वृद्धिंगत होता जाता है । अन्तमें नमि अपनी बहिन सुभद्राका विवाह भरत महाराजके साथ यह कहकर सम्पन्न करते हैं कि ज्योतिषियोंने यह भविष्यवाणी की है कि सुभद्राका विवाह जिसके साथ सम्पन्न होगा, वह चक्रवर्ती बनेगा । महारानी बैलाती पति-अभ्युदयको सुनकर उक्त प्रस्तावसे सहमत हो जाती है और सुभद्राका विवाह भरतके साथ सम्पन्न हो जाता है ।
५. आदिपुराण-जैन सिद्धान्त भवन आरा ग्रन्थागारमें इस ग्रन्थकी पाण्डलिपि वर्तमान है । कथावस्तु जिनसेनके आदिपुराणके समान ही है ।
उपर्युत चार नाटफोंके अतिरिक्त १. उदयनराज २. भरतराज, ३. अर्जुन राज और ४. मेघेश्वर ये चारनाटक और इनके द्वारा विरचित्त माने जाते हैं | भरतराज सम्भवतः सुभद्रानाटिका और मेघेश्वर विक्रान्तकौरवका ही अपरनाम है। उदयनराज और अर्जुनराज इन दो नाटकोंके सम्बन्धमें अभी तक यथार्थ जानकारी उपलब्ध नहीं है। आचार्य हस्तिमल्ल अत्यन्त प्रतिभाशाली और वहुशास्त्रज्ञ विद्वान् हैं |
आचार्य माघनन्दि जैन साहित्य में माघनन्दि नामके तेरह आचार्योका उल्लेख प्राप्त होता है । १. एक आचार्य कुन्दकुन्दके आम्नायमें कुलभूषणके शिष्य माधनन्दिका उल्लेख आता है। यह गुरु-शिष्यपरम्परा निम्न प्रकार है
कुलभूषण माघनन्दि शुभचन्द्रत्रविद्य चारुकोतिपण्डित माघनन्दिनतो
अभयचन्द्र
बालचन्द्रपण्डित
रामचन्द्र २. दूसरे माधनन्दिवती चारुकीति पण्डितके शिष्य हैं। ३. तीसरे माघ२८२ : तीथंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा