Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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मृतका पान कराया था। मुनि श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तदेयने पहले सोमश्रेष्ठिके विशेष निमित्त २६ गाथात्मक पदार्थलक्षणरूप लघुद्रव्यसंग्रहकी रचना की, पश्चात् तत्त्वपरिज्ञानार्थ ५८ गाथात्मक बृहद्रव्यसंग्रहकी रचना को, जिसका उल्लेख वृतिकारने उत्थानवाक्यमें किया है। वृत्तिकार ब्रह्मदेवने उसी आश्रम नगरके मुनिसुव्रत चैत्यालयमें अध्यात्मरसभित द्रव्यसंग्रहको महत्त्वपूर्ण टीका लिखी है। यह टोका और मलग्रन्थरचना भोजदेवके राज्यकाल वि० सं० १०७०-१११०के मध्य लिखी गयी है। उत्थानिकावाक्यसे यह स्पष्ट है कि ब्रह्मदेवकी टीका और द्रव्यसंग्रह दोनों ही भोजके कालमें रने गये हैं। अतएव ब्रह्मदेवका समय वि० सं० को १२वीं शताब्दी होना चाहिए। ___ डॉ० ए०एन० उपाध्येने ब्रह्मदेवको जयसेनके बादका विद्वान बतलाया है। पर ब्रह्मदेव इनसे पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं, क्योंकि जयसेनने 'पञ्वास्तिकाय' की पहली गाथाकी टोकामें ग्रन्थके निमित्तकी व्याख्या करते हुए लिखा है-अथ प्राभूतग्रंथे शिवकुमारमहाराजो निमित्तं अन्यत्र द्रव्यसंग्रहादी सोमश्रेष्ठयादि ज्ञातव्यं"। इससे स्पष्ट है किजयसेन निमित्त कथनकी बातसे परिचित थे। अतएव वे ब्रह्मदेवके उत्तरवर्ती जात होते हैं। यों तो ब्रह्मदेवकी टीकाशैली जयसेनाचार्य जेसो ही प्रतीत होती है। जयसेनाचार्यने टीकाओं में शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ और भावार्थका कथन करनेका निर्देश किया है। मंगलादिकी चर्चा एवं व्याख्यान करनेकी पद्धति जयसेनाचार्य जैसी ही प्रतीत होती है। अतः सहसा ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रह्मदेवने अयसेनाचार्यका अनुसरण किया हो । जयसेनने 'पंचास्तिकाय'की १४६वीं गाथा और समयसारकी २१७वीं गाथाकी टोकामें, द्रव्यसंग्रहको ५७वीं माथाको टीकामें उद्धत उद्धरणोंको अपनाया है। अतः अनुमान यह है कि 'बृहद्व्यसंग्रह'को १३वी गाथामें उद्धृत गद्यवाक्योंके आधारपर पण्डित आशाधरजीने श्लोकको रचना को है__ "सहजशुद्धकेवलज्ञानदर्शनरूपाखण्डकप्रत्यक्षप्रतिभासमयनिजपरमात्मप्रभृतिषड्दव्यपञ्चास्तिकायसप्ततत्त्वनवपदार्थेषु मुदत्रयादिपञ्चविंशतिमलरहितं वीतरागसर्वज्ञपणीतनविभागेन यस्य श्रद्धानं नास्ति स मिथ्यादृष्टिर्भवति । पाषाणरेखासदशानन्तानुबन्धिक्रोधमानमायालोभान्यतरोदयेन ........." इन्द्रियसुखादिपरद्रव्यं हि हेयमित्यर्हत्सर्वज्ञप्रणोतनिश्चयव्यवहारमयसाध्यसाधकभावेन मन्यते, परं किन्तु भूमिरेखादिसदृशक्रोधादिद्वितीयकषायोदयेन मारणनिमित्तं तलवरगृहीततस्करवदात्मनिन्दासहितः सनिन्द्रियसुखमनुभवतीयविरतसम्यग्दष्टेलक्षणम् । यः पूर्वोक्तप्रकारेण सम्यग्दृष्टि: सन् भूमिरेखादिसमानक्रोधादिद्वितीय१. परमात्मप्रकाश, प्रस्तावना (अंग्रेजी), पृ०७२ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३११
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