Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
प्रथम सन्धिमें णमोकारमन्त्रका पाठ करनेसे एक ग्वाला सुदर्शनके रूपमें जन्म ग्रहण करता है। इस सन्धिमें जम्बूद्वीप, मगधदेश, राजगृह नगर और विपुलाचल पर्वतपर स्थित भगवान् महावीरके समवशरणका वर्णन किया गया है। द्वितीय सन्धिमें राजा श्रेणिकने गौतमगणघरसे पन्चनमस्कारमन्त्रके फलके सम्बन्धमें प्रश्न किया। उसके उत्तरमें गौतमगणधरने त्रैलोक्यका वर्णन करके अंगदेश, चम्पानगरी, दधिवाहन राजा, वहाँके निवासी सेठ ऋषभदास, उनकी पत्नी अहंदासी तथा उनके सुभग नामक ग्वालेका वर्णन किया है। इस ग्वालेको एक बार वनमें मुनिराजके दर्शन हुए और उनसे णमोकारमन्त्र प्राप्त कर उसका पाठ करने लगा। सेठने उसे मन्त्रका माहात्म्य समझाया और धर्मोपदेश दिया। उस ग्वालेने गंगानदीमें जलक्रीड़ा करते हुए ठूठसे आहत होकर मन्त्रके स्मरण पूर्वक प्राण त्याग किये।
तृतीय सन्धिमें ग्वालेका वह जीव सेठ ऋषभदासके यहाँ पुत्रके रूपमें जन्म ग्रहण करता है। सुभग और शुमलक्षणोंसे युक्त होनेके कारण पुत्रका नाम सुदर्शन रखा जाता है। वयस्क होने पर सुदर्शन अनेक प्रकारकी विद्याओं और कलाओंमें निपुणता प्राप्त करता है। सुदर्शनको सुन्दरताके कारण नगरकी नारियों उसपर आसक्त होने लगती हैं।
चतुर्थ सन्धिमें बताया गया है कि सुदर्शनका एक घनिष्ठ मित्र कपिल था। एक दिन वह अपने इस मित्रके साथ नगर-परिभ्रमण कर रहा था कि सुदर्शनकी दृष्टि मनोरमा नामक कुमारी युवतीपर पड़ी और वह उसपर कामासक्त हो गया। मनोरमा भी उस पर मोहित हो गयी।
पञ्चम सन्धिमें सुदर्शन और मनोरमाके विवाहका वर्णन आया है और इसी सन्धिमें महाकाव्यको प्रथित परम्पराके अनुसार सूर्यास्त, सन्ध्या, रात्रि, प्रभात एवं वर-वधूको विभिन्न कामक्रीड़ाओंका निरूपण किया गया है।
षष्ठ सन्धिमें सदर्शनके पिता सेठ ऋषभदास मुनिका दर्शन करते हैं और मुनिके उपदेशसे प्रभावित होकर विरक हो आते है तथा अपने सुत्र सुदर्शनको गृहस्थमार्गको शिक्षा देकर और उसे समस्त कुटुम्बका भार सौंपकर वे मुनिदीक्षा ग्रहण कर लेते हैं और अन्त में उन्हें स्वर्गकी प्राप्ति होती है।
सप्तम सन्धिमें बताया गया है कि सदर्शनके मित्रकी पत्नी कपिला उनपर मोहासक्त होता है और छलसे उसे अपने यहां बुलाती है। सुदर्शन बहाना बनाकर किसी प्रकार अपने शीलकी रक्षा करता है। वसन्त ऋतुका आगमन हुआ और उत्सव मनानेके लिए राजा एवं प्रजा सभी उपवनमें सम्मिलित हुए। रानी अभया सुदर्शनके रूपलावण्यको देखकर मुग्ध हो गयी और उसने फपिला
२९२ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा