Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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नन्दि कोल्हापुरीय हैं जो कुलचन्द्रदेवके शिष्य थे | इनकी गुरु-परम्परा इस प्रकार है
गोल्लाचार्य काल्ययोगों
अविद्धकर्ण पमनन्दि (कौमारदेव)
कुलभूषण
प्रभाचन्द्र
कुलचन्द्रदेव
माघनन्दि मुनि (कोल्हापुरीय) गण्डविमुक्त देव
!. ... .-.भानुकोति
देवकोत्ति (स्वर्ग० १०८५ ४. मातुर्म माघान्ति मू: येसोग र सुन्दकुन्दान्वयके हैं। इस आम्नायमें देवेन्द्र सिद्धान्तदेवके पश्चात् चतुर्मुखदेवका द्वितीय नाम वृषभनन्द्याचार्य दिया है। चतुर्मुखदेवके शिष्योंमें महेन्द्रचन्द्र पण्डितदेवका नाम प्रसिद्ध है । माघनन्दिके शिष्योंमें त्रिरत्ननन्दिका नाम अधिक प्रसिद्ध है । श्रवणबेलगोलाके ५५वें अभिलेखमें चतुर्मुखदेवके ८४ शिष्योंके नाम आये हैं। इन्हीं शिष्योंमें एक माघनन्दि भी हैं । ५. पंचम माघनन्दि गुप्तिगुप्तके शिष्य हैं । इनकी गुरुपरम्परामें भद्रबाहुके शिष्य गुप्तिगुप्त, गुप्तिगुप्तके शिण्य मावन्दि, माघनन्दिके शिष्य जिनचन्द्र और जिनचन्द्रके शिष्य कुन्दकुन्द बताये गये हैं। ये माघनम्दि धृतज्ञानियोंमें परिगणित हैं। ६. छठे माधनन्दि नयकीतिके शिष्य हैं। इनका उल्लेख श्रवणबेलगोलाके अभिलेखसंख्या ४२, १२४ और १२८में आया है। बताया है
"गाम्भीर्ये मकराकरो वितरणे कल्पद्रुमस्तेजसि प्रोचण्ड-झुमणिः कलास्वपि शशी धैर्ये पुनमंन्दरः । सोनी-परिपूर्ण-
निर्मल-यशो-लक्ष्मी - मनोरञ्जनो भास्यस्यां भुवि माधनन्दिमुनिपो भट्टारकाग्रेसरः॥" १. जैन शिलालेखसंग्रह प्रथम भाग, अमिलेखसंख्या ४२, पद्यसंस्था ३६, पृ. ४० ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २८३