Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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है, जिसमें मुद्रित प्रतिको अपेक्षा निम्नलिखित सात गाथाएं अधिक मिलती हैं । इन गाथाओंपरसे ग्रन्थरचयिताके समयके सम्बन्धमें जानकारी प्राप्त होती है--
''अणुवदगुरुबालेंदु महथ्वदे अभयचंदसिद्धति । सत्थेऽभयसूरि-पहाचंदा खलु सुयमुणिस्त गुरू ।। सिरिमूलसघदेसिय पुत्थयगच्छ कोंडकुंदमुणिणाहं (?) । परमण्ण इंगलेसबम्मिजादमुणिपहदाहाण) स्स ।। सिद्धताहयचंदस्स य सिस्सो बालचंदमणिपवरो। सो भवियकूचालयाणं आणंदकरो सया जयत ।। सदागम-परमागम-तमकागम-निरवसेसवेदो हु । विजिदसयलण्णवादी जयउ चिर अभयसरिसिद्धति ॥ गयणिक्खेवपमाणं जाणित्ता विजिदसयलपरसमझो। वरणिवइणिवद्वंदियपयपम्मो चारुकित्तिमुणी ॥ णादणिखिलत्थसत्यो सयलणरिदेहिं पूजिओ विमलो। जिणमग्गगमणसूरो जयउ चिरं चारकित्तिमुणी ।। वरसारत्तयणिउणो सुइं परओ वियिपरभाओ।
भवियाणं पडिबोहर्षयरो पहाचंदणाममुणो॥ इन गाथाओंसे स्पष्ट है कि देशीयगण पुस्तकगच्छ इंगलेश्वरबलीके आचार्य अभयचन्द्रके शिष्य बालचन्द्रमुनि हुए । आचार्य अभयचन्द्र व्याकरण, परमागम, तर्क और समस्त शास्त्रोंके ज्ञाता थे। इन्होंने अनेक नादियोंको पराजित किया था। गाथाओंमें आये हुए आचार्यों पर विचार करनेसे इनके समयका निर्णय किया जा सकता है ।
श्रवणबेलगोलाके अभिलेखोंके अनुसार श्रुतमुनि अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य थे । इनके शिष्य प्रभाचन्द्र हुए और उनके प्रिय शिष्य श्रुतकीर्तिदेव हए । इन श्रुतकीतिका स्वर्गवास शक संवत् १३०६ (ई० सन् १३८४) में हुआ ! इनके शिष्य आदिदेव मुनि हुए।पुस्तकगच्छके श्रावकोंने एक चैत्यालयका जीर्णोद्धार कराकर उसमें, उक्त श्रुतकीर्तिकी तथा सुमतिनाथ तीर्थरको प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की थी।' ___ बालचन्द्रमुनिने श्रुतमुनिको श्रावकधर्मकी दीक्षा दी थी । आस्रवत्रिभंगीमें धुतमुनिने इनका स्मरण किया है।
अभयचन्द्र-ये मूलसंघ देशीयगण पुस्तकगच्छ और कुन्दकुन्द आम्नायके १. एपि कर्णा० ४, हनसूर, १२३ ।
प्रबुखाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २७३३