Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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सागरसे पार करनेकी शक्ति प्राप्त कर लेता है। वज्रकुमार मुनिने धर्मप्रचारके लिए संकट सहकर भी ओहिली देवीके जैन रथको चलाया । अतएव प्रत्येक व्यक्तिको धर्मात्माओंकी सेवा करना, धर्ममार्गका उपदेश देना, दुःखी और दीन प्राणियोंको धर्मका सच्चा स्वरूप समझाकर अच्छे मार्गपर लगाना चाहिये ।
दसवीं कथा अहिंसा धर्मकी विशेषता प्रकट करने वाली है। समाज और व्यक्तिको अहिंसाके द्वारा ही शान्ति प्राप्त हो सकती है। राग, द्वेष और मोहके अधीन होकर ही व्यक्ति हिंसामें प्रवृत्त होता है। सेठ गणपालकी कथा विधर्मीको कन्या देनेका विरोध करती है। दशवी कथा द्वारा धनकीति कुमार अल्पहिसाके त्यागसे ही महान बन गया, की सिद्धि की गयी है।
ग्यारहवीं कथा सत्याणुव्रतकी महत्ता बतलानेके लिए लिखी गयी है। जीवनमें अहिंसा धर्मको उसारनेके लिए सत्यका पालन करना परमावश्यक है। निध वचन, कठोर वचन और किसीके दिलको दुखानेवाले वचन असत्य वचनके अन्तर्गत हैं। असल्य भाषण करनेसे संघश्रीकी क्या दुर्गति हुई, यह इस कथासे स्पष्ट है । धनद राजाने बौद्धधर्मानुयायी संघश्रीको जैनधर्ममें दीक्षित कर भी लिया। क्ति अपने मरुके बहकाने में आकर संघश्री असत्य भाषण कर पुनः बौद्ध हो गया। असत्य भाषण के कारण संघश्रीको अन्या बनना पड़ा। जो व्यक्ति जीवन में सत्यव्रतका पालन करते हैं, उनका आत्मकल्याण होने में विलम्ब नहीं होता। ___ बारहवीं कथा तो इतनी रोचक और ज्ञानवर्द्धक है कि पाठक सत्यको प्राप्त करनेके लिए उत्सुक हए बिना नहीं रह सकता है । जीवनसत्य, जो कि कठिन आवरण में छिपा रहता है, इस कथा द्वारा प्रकाशमें आ जाता है । गलतफहमीके कारण स्वार्थवश मनुष्य कितना नीच हो सकता है, धर्मात्माओंपर कितने अत्याचार कर सकता है, यह इस कथा में वणित जिनदत्त सेठके आचरणसे स्पष्ट है । धनका मोह मनुष्यको कितना जघन्य कृत्य करनेके लिए प्रेरित करता है, यह भी इस कथामें आया है। अवान्तर कथाएँ भी बड़ी ही रोचक और आत्मशोधक हैं।
तेरहवीं कथा शीलवतको महत्ता बतलानेके लिए लिखी गयी है । इस ग्रतमें अपूर्व शक्ति है। इसके द्वारा मनुष्य अपनी आत्मशक्तिका विकास करता है। राग-द्वेषरूप विभावरिणति ब्रह्मचर्यव्रतके पालन करनेसे दूर हो जाती है । इस कथामें प्रभातिकुमार और चन्द्रलेखाका अद्भुत चरित्र चित्रित हुआ है। २६८ : शीर्थकर महावीर और उनको आचार्य परम्परा