Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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चौहदवी कथामें परिग्रहके दोषोंका विवेचन करते हुए अपरिग्रहकी विशेषता बतलायो गयो है। तृष्णा और लालसा व्यक्तिको कितना बेचैन रखती है, यह इस कथासे स्पष्ट है। विषयासक्ति को लेकर मरण करनेसे व्यक्ति लियंञ्च आदि योनियोभ भ्रमण करता है । इस पाथामें बताया गया है कि राजा अनुपरिचरने मृत्युके समय परिग्रहमें आसक्ति रखने के कारण सर्पयोनिमें जन्म ग्रहण किया। अनन्तवीर्य महाराज द्वारा सम्बोधन प्राप्त होनेपर अपने शत्रसे बदला लेने की भावनाके कारण वह भवनबासी देव हुआ। गश्चात् बहाँसे ज्युत होकर इसी राजाका जीव हस्तिनापुरके राजा जयदत्तके यहाँ गरुदत्त नामका पुत्र हुआ और समय पाकर समस्त परिग्रहका त्याग कर आत्मकल्याण किया। आचार्य ने परिग्रहको समस्त पापोंका खजाना बताया है । इस एक पापर्वः कारण असंख्यात पाप करने पड़ते हैं।
इस प्रकार इस ग्रन्थमें कथाओंके माध्यमसे धर्मके महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं। श्रावकाचारको प्राय: सभी बातें इस ग्रंथमें बतायी गयी हैं । सप्ततत्त्व, षद्रव्य, पंचास्तिकाय, अष्टांग सम्यक्दर्शन, कर्मसिद्धान्त, सप्त व्यसनत्याग, अष्टमलगुण, द्वादशउत्तरगण, सल्लेखना आदिका विस्तारपूर्वक वर्णन पाया है | विषय प्रतिपादन करनेकी विधि अत्यन्त सरल और सरस है। कथात्मक शैलीम धर्मसिद्धान्तोंका निरूपण किया गया है ।
वीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती
आचारसारके रचयिता वीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती मलसंघ पुस्तकगच्छ और देशीयगणके आचार्य हैं । आचारसार ग्रंथके अन्तमें जो प्रशस्ति दी गयी है, उससे इतना ही ज्ञात होता है कि इनके गुरु मेघचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती थे। लिखा है
श्रीमेघचन्द्रोज्ज्वलमूत्तिकोत्तिः समस्तसैद्धान्तिकचक्रवर्ती।
श्रोवीरनन्दी कूतवानुदारमाचारसारं यत्तिवृत्तसारम् ।। ग्रंथके प्रत्येक अधिकारके अन्समें जो पुष्पिका दो गयी है उसमें भी आचार्य वारनन्दिने अपने गुरु मेषचन्द्रका उल्लेख किया है
"इति श्रीमन्मेषचन्द्रत्रविद्यदेवपादप्रसादाऽऽसादितात्मप्रभावसमस्तविद्याप्रभावसकलदिग्पत्तिकोतिनोमवीरनंदिसतांतिकचक्रवत्तिप्रणीते श्री'आचारसार' नाम्नि ग्रंथे शीलगुणवर्णनात्मको द्वादशोऽधिकारः"॥ १. आचारसार, माणिकचन्द्र ग्रन्पमाला, ग्रन्यांक ११, १२।३३ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २६९