Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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विद्वान् दुर्लभराज इत्यभिहितस्तस्यात्मजो वोसरिः स्वे शास्त्रे रचनां चकार रुचिरानाथस्वरूपस्थितिम् ॥'
इस पद्यसे ज्ञात होता है कि प्राच्य उदीच्य ब्राह्मण वंशमें नारायण नामक व्यक्ति हुआ । इनका पुत्र दुर्लभराज और दुर्लभराजका पुत्र भट्टवोसरि हुआ । भट्टवसरि भाईका नाम 'कोक' बताया गया है। पचम प्रकरणके अन्तिम पासे कोककी सूचना प्राप्त होती है
यत्तत्कालसमागत्तस्य जनयत्युल्लाममात्रादपि प्रष्टुनकर चोविकारटुतिशतिर् । तत्संवत्सर मोहजालपटल प्रध्वंसदिव्यौषधं कार्य ज्ञानमिदं चकार रुचिरं कोकानुजो वोसरि ॥
भट्टवसर आयज्ञानग्रन्थ के पातप्रकरण में 'अणहिलपाटलपुर'का निर्देश किया है। इस पद्यसे यह भी ज्ञात होता है कि सुग्रीव आदि आचार्योंने जिस महाशास्त्रकी रचना की थी, उसका अध्ययन आचार्य दामनन्दिने किया और दामनन्दिसे समस्त विषयका परिज्ञान भट्टवोसरिने प्राप्त किया । पद्य निम्न प्रकार है
सुग्रीवादिमुनीन्द्रगुम्फितमहाशास्त्रेषु यज्जस्थितं साम्नायं गुरुदामनन्दिवचसा विज्ञाय सर्वं पुनः ॥ संक्षेपादण हिल्लपाटलपुरि प्रज्ञापदं ज्ञानिनं पातसमाश्रयं तदघुता चक्रे स्फुटं बोसरि ||
अन्तिम सम्धि वाक्यके पूर्व भी एक प्रशस्तिपद्य आया है, पर पद्य अशुद्ध है । इस पद्यसे भट्ट वोसरिका दिगम्बराचार्यत्व सिद्ध होता है । पथमें बताया है कि महादेव नामके विद्वान्से अल्प विषयको जानकर सुप्रणयिनीके रूपमें शाब्दी कलाको प्राप्तकर कोकके भाई कोसरि सुधीने यह शास्त्र रचा, जो कि स्कुरायमान वर्णोंवाली आयश्री सोमाग्यको प्राप्त है। अथवा उस आयश्री से सुशोभित है। यही कारण है कि आयज्ञानकी स्वोपज्ञ टीकाका नाम आयश्री है। पद्य निम्न प्रकार है-
महादेवान्मांत्री प्रमितविषय रागविमुखो विदित्वा श्रीकोत्कविसमयशा सुप्रणयनीं ||
१. प्रथम प्रकरणका अन्तिम पथ, आयज्ञान तिलक | २. वही, पंचम प्रकरण ।
३. वही, द्वितीय प्रकरण
२४६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी वाचार्य-परम्परा