Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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namely prevention and cure, and gives at the end a long discourse in Sanskrit prosc WIJ the uselessiERS of a flesh clied, said to have been deliverců by the author all the court of Angliavarsha, where many learned men and doctors haul assembled." ___अर्थात अनेक महत्त्वपूर्ण विषयोंसे परिपूर्ण आयुर्वेदका कल्याणकारक नामक ग्रन्थ उमादित्याचार्य द्वारा बिरचित मिलता है । ये जैनाचार्य राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष प्रथम एवं चालुक्य राजा कलिविष्णुवर्धन पंचमके समकालीन थे । ग्रन्थका आरम्भ आयुर्वेद तत्त्वके प्रतिपादनसे हुआ है, जिसके दो विभाग किये गये हैं-(१) रोगरोधन और (२) चिकित्सा । अन्तिम एक गद्यस्खण्डमें उस विस्तृत भाषणको अंकित किया है, जिसमें मांसकी निष्फलता सिद्ध की गयी है और जिसे अनेक विद्वान् और बंद्योंको उपस्थितिमें नृपतुंगको सभामें उग्रा. दित्याचार्यने दिया था।
उग्रादित्याचार्यके गुरुका नाम श्रीनन्दि है । इन श्रीनन्दिका समय वि० सं० ७४९ है । यदि इसको शक संवत् मान लिया जाय तो उग्रादित्य आचार्य नन्दि संघके आचार्य सिद्ध होते हैं । रचना-परिचय
उग्रादित्याचार्यका कल्याणकारक नामक एक बहकाय अन्य प्राप्त है । इस ग्रन्थमें २५ परिच्छेदोंके अतिरिक्त अन्तमें परिशिष्ट रूपमें अरिष्टाध्याय और हिताध्याय ये दो अध्याय भी आये हैं। ग्रन्थकर्त्ताने प्रत्येक परिच्छेदके आरम्भमें जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार किया है। ग्रन्थ रचनेकी प्रतिज्ञा, उद्देश्य आदिका वर्णन किया गया है। २५ परिच्छेदोंके विषय-क्रम निम्न प्रकार हैं
(१) स्वास्थ्य-संरक्षणाधिकार-इसमें ४५, पद्य हैं। वैद्यशास्त्रके संक्षिप्त विषय-वर्णनके पश्चात् शकुन, निमित्त और सामुद्रिक शास्त्र द्वारा आयु एवं स्वास्थ्यको परीक्षा की गयी है।
(२) गर्भोत्पत्ति-लक्षण-इस परिच्छेदमें ६० पद्य हैं। गर्भसंरक्षणकी विधि गर्भाधानक्रम, गर्भ-पोषण और गर्भ में शरीर-वृद्धि होनेके क्रमका कथन किया गया है।
(३) सूत्रव्यावर्णन-इस परिच्छेदमें ६९ पद्य हैं। इनमें अस्थि, सन्धि, 1. Mysore Archacological Report 1922, Page 22, २५४ : सीकर महापौर और उनकी श्राचार्य-परम्परा