Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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विभूषित बतलाया है । पच्चीसवें कल्पाधिकार के अन्त में जो प्रशस्ति दी गयी है उसमें श्रीविष्णुराजका उल्लेख आया है-
श्रीविष्णुराजपरमेश्वरमौलिमालासंलालितांत्रियुगलः सकलागमज्ञः ॥ आलापनीयगुणसोन्नतसन्मुनीन्द्रः । श्रीनंदिनंदित गुरुगु रुरूजितोऽहम् ।।
महाराज विष्णुराजके मुकुटकी मालासे जिनके चरणयुगल शोभित है, जो सम्पूर्ण आगमके ज्ञाता हैं, प्रशंसनीय गुणोंके धारी, यशस्वी, श्रेष्ठ मुनियोंक स्वामी हैं - ऐसे श्रीनन्दिनामके प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं। ये आचार्य ही उनादित्य गुरु हैं । यहाँ यह विचारणीय है कि विष्णुराज परमेश्वर कौन है ? श्री पं० के० भुजबली शास्त्रीने इन्हें कलचुरी राजवंशका अनुमानित किया है । पर यह अनुमान भ्रान्त है। डा० ज्योतिप्रसाद जैनने उक्त विष्णु राजको afier पूर्वी चालुक्य नरेश विष्णुवर्धन चतुर्थं सिद्ध किया है और उसी राजाके राज्य के अन्तर्गत रामतीर्थं पर्वतको उग्रादित्यका रामगिरि सूचित किया है ।
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हमारी दृष्टिसे यह विष्णुराज अमोघवर्ष के पिता गोविन्दराज तृतीयका ही अपर नाम है । जिनसेनने पाश्वभ्युदय में अमोघवर्षको परमेश्वर उपाधि बसलायी है | बहुत सम्भव है कि यह उपाधि राष्ट्रकूटोंको गितु परम्परागत हो । कतिपय ऐतिहासिक विद्वान् विष्णुराजको चालुक्य राजा विष्णुवर्धन मानते हैं, पर इससे उम्रादित्याचायके समय निर्णय में कोई बाधा नहीं आती। सम्भव है कि उस समय इस नामका कोई चालुक्य राजा भी रहा हो । पुरातत्त्ववेत्ता नरसिंहाचार्यने भी यह तथ्य स्वीकार किया है कि कल्याणकारककी रचना उग्रादित्यने अमोघवर्ष प्रथमके शासनकालमें की है । लिखा है
Another manuscript of some interest is the medical work kalyanakaraka of Ugraditya, a Jaina author, who was a contemporary of the Rastrakuta king Amoghavrsa-I and of the Eastern chalukya king kali Vishnuvardhana V. The work opens with the statement that the science of medicine is divided into two parts,
१. कल्याणकारक, परिच्छेद २५, पद्य ५१ ।
२. प्रशस्तिसंग्रह, आरा, पृष्ठ ९४ ।
1. Jaina Sources of the History of Ancient India pp. 204-206,
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २५३