Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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यह महत्त्वपूर्ण है । इसमें ध्वज, धूम, सिंह, गज, खर, वान, वृष और ध्वांक्ष इन आठ आयों द्वारा प्रश्नोंके फलका सुन्दर वर्णन किया है। इन्होंने आठ आयों द्वारा स्थिर चक और चल-चक्रादिककी रचना कर विविध प्रश्नोंके उत्तर दिये गई है। ग्रन्थप्रकरण निम्न प्रकार है
१. आयस्वरू-आठ आयोंक स्वरूप, गुण और आकृतियोंका विश्लेषण ४७ गाथाओं में किया है।
२. पातविभाग - रुद्र, मद्ध-विमुक्त, रुद्ध-गहीत-विमुक्त, संस्थान, अनकल, प्रतिकूल, चलित, सरित, अभिमुख, पूर्वमुख, अन्तरित आदि १६ पातोंका कथनकर उनके आयरूप अक्षरोंका विवेचन किया है। इसमें ४ गाथाएं हैं।
३. आयावस्था-१९, गाथाओंमें मित्र, शुभ, अशम, ग्पूि आदि सम्बन्धों द्वारा आयोंकी अवस्थाओंका कथन किया गया है।
४. ग्रह-योग-इस प्रकरणमें २८ गाथा है। ग्रहोंके मलतः दो भेद किये हैं-१. सौम्य और २. पाप ! इन दोनों ही प्रकारके ग्रहोंके आयवर्ण एवं शुभाशुभ फलोका निर्देश किया है।
५. पृच्छाकायंज्ञान-१६ गाथाओंमें पृच्छकको चर्या, चेश, दृष्टि एवं वार्तालाग आदिके द्वारा आयोंका आनयन ।
६. शुभाशुभ-इसमें १७ गाथा हैं। इनमें आयों द्वारा आये हग शुभाशुभ वर्णोपरसे फलादेश बतलाया गया है। ___७. लाभालाभ-इस प्रकरण में १० गाथाएँ हैं । इनमें पृच्छकके प्रश्नानुसार आधों का निर्धारण कर लाभालाभ फलादेशका वर्णन किया है।
८. राग-निर्देश- इसमें २: गाथाएं हैं। रोगके सम्बन्धमें किये गये प्रश्नोंके उत्तर दिये गये हैं। सर्वप्रथम रोगको साध्यामाध्यतापर विचार किया गया है । पश्चात् कितने समय तक रोग रहेगा, इसपर भी विचार किया गया है।
२. कन्या-परीक्षण-इस प्रकरण में ११ गाथाएँ हैं। श्रावकत्रमके परिपालन हेतु विवाह आदि क्रियाएँ आयश्यक हैं। अतएव कन्याको परीक्षाका वर्णन इन गाथाओंमें आया है। किस प्रकारके प्रश्नमें भार्या बननेवालो कन्या सुशोल होगी, यह प्रश्नशास्त्रकी दृष्टिसे विचार किया है।
१०. भू-लक्षण-इस प्रकरण में २५ गाथाए हैं। प्रश्नानुसार किस प्रकारको भूमि कुल, गोत्र, धन इत्यादि करनेवाली होगी और किस प्रकारको भूमि हानि करनेवाली होगी, इसका विवेचन किया है। २४८ : तीर्थकर महायोर और उनकी आचार्य परम्परा