Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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शसीके विद्वान् पं० आशाधरजीने इष्टोपदेश आदि टोकाओंमें सत्त्वानुशासनके कितने हीपद्योंको ग्रन्यके नामसहित उद्धृत किया है । किसी-किसी टीकामें उद्धृप्त पद्योंके साथ रामसेनाचार्यका नाम भी दिया है। जिनयज्ञकल्पको प्रशस्ति में इष्टोपदेशकी टोकाके रचनेका उल्लेख आया है और जिनयज्ञकल्पका रचनाकाल वि० सं० १२८५ है। अतएव रामसेनके समयकी उत्तर सीमा वि० सं० १२८५ के पूर्व है।
उत्तरपुराणका एक पद्य तत्त्वातुशासनके पद्यसे बहुत साम्य रखता है। अतः यह स्पष्ट है कि रामसेनने उत्तरपुराणके पद्यका अनुसरण किया है। गुणभद्राचार्य द्वारा विरचित आत्मानुशासनके कतिपय पद्योंका प्रभाव भी तत्त्वानुशासनपर है। यथादेहज्योतिषि यस्य शक्रसहिताः सर्वेऽपि मग्नाः सुरा
ज्ञानज्योतिषि पञ्चतत्त्वसहितं लग्नं नभश्चाखिलम् । लक्ष्मीधामदधद्विधूतचिसतध्वान्तः स घामद्वयं
पन्थानं कथयत्वनन्तगुणगुणभृत्कुन्युभवान्तस्य वः ॥ अर्थात्, जिनके शरीरको कान्तिमें इन्द्रसहित समस्त देव निमग्न हो गये, जिनकी शानरूप ज्योतिमें पञ्चद्रव्यसहित समस्त आकाश समा गया, जो लक्ष्मीके स्थान हैं, जिन्होंने फैला हुआ अज्ञान अन्धकार नष्ट कर दिया, जो आभ्यन्तर और बाह्यके भेदसे दोनों प्रकारके तेजको धारण करते हैं और जो अनन्त गुणोंके धारक हैं, ऐसे कुन्थुनाथ भगवान् सभीके लिए मोक्षमार्ग प्रदर्शित करें। __इसी आशयको लेकर आचार्य रामसेनने भी पद्य रचा है, जो भावकी दृष्टिसे थोड़ा-सा भिन्न होनेपर भी गुणभद्रका अनुकरण है । यथा
देहज्योतिषि यस्य मज्जति जगदुग्वाम्बुराशाविव शान-ज्योतिषि च स्फुटत्यतितरामों भूर्भुवःस्वस्त्रयी। शब्द-ज्योतिषि यस्य दर्पण इव स्वार्थाश्चकासन्त्यमी
सश्रीमानमराचितो जिनपतिज्योतिस्त्रयायाऽस्तु न: ॥ इससे स्पष्ट है कि रामसेनाचार्य गुणभवफे उत्तरकालीन हैं। गुणभद्रका उत्तरपुराण शक संवत् ८१५, वि० संवत् ९५०में पूर्ण हुवा है । अतएव रामसेनके समयकी पूर्वसीमा ९५० तक पहुंच जाती है। १. उसरपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, ६४४५५ । २. तस्वानुशासन, वीरसेवामविर, चलोक २५९ ।
प्रमुवाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २३७