Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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कराया गया है। शनि और मंगलके निमित्तपरसे लोहा और ताँबेकी घटाबढ़ीका कथन किया गया है। मन्त्रमहोदधि
यह मन्त्रशास्त्रसम्बन्धी ग्रन्थ है। इसकी भाषा प्राकृत है। "रिण्टसमुच्चय' में आये हुए मन्त्रोंसे पता चलता है कि ये आचार्य मन्त्रशास्त्रके अच्छे ज्ञाता थे । मन्त्रों में वैदिकधर्म और जैनधर्म, इन दोनोंकी कतिपय बातें आयी हैं, जिससे अवगत होता है कि मन्त्रशास्त्रमें सम्प्रदाय विभिन्नता नहीं ली जाती थी। अथवा यह भी कहा जा सकता है कि वैदिकधर्मके प्रभावके कारण ही जैनधर्ममें इस विषयका समावेश किया गया होगा। क्योंकि आठवीं शती में जनधर्मको नास्तिक कहकर विधर्मी श्रद्धालुओंकी श्रद्धाको दुर कर रहे थे। अत: जैनाचार्य
और भट्टारकोंने वैदिकधर्मकी देखा-देवी मन्त्र-तन्त्रवादको जनधर्ममें स्थान दिया। ___ ग्रंथकर्ताके जीतनकी काप ग्रन्थमें रहती है. इस नियमके अनुसार यह स्पष्ट है कि आचार्य दुर्गदेव एक अच्छे मान्त्रिक थे। मन्त्रमहोदधि मन्त्रशास्त्रका महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।
मुनि पद्मकीर्ति 'पासणाहचरिज'के कर्ता मुनि पद्मकीर्ति हैं। इस पंथकी प्रत्येक सन्धिके अन्तिम कड़वकके पत्ते में 'पउम' शब्दका उपयोग किया गया है। यह 'पउम' शब्द 'कमल' और 'लक्ष्मी' दोनों ही अर्थों में सन्दर्भके अनुसार घटित हो सकता है। पर चतुर्थ सन्धिके अन्तिम घत्ते में 'पउमभणई तथा पांचवीं, चौदहवीं और अठारहवीं सन्धियोंके अन्तिम पत्तोंमें 'पउमकित्ति' पदका प्रयोग आया है । १४वीं और १८वी मन्धियोंके अन्तिम घत्तोंमें 'पउकित्तिमुणि' का प्रयोग आता है, जिससे स्पष्ट है कि आचार्य पद्मकीर्तिमुनिने 'पासणाहचरिउ'की रचना की। ग्रन्यके अन्त में आचार्यने कविप्रशस्ति निबद्ध की है, जो निम्न प्रकार है
जइ वि विरुद्ध एवं णियाण-बंध जिणिद तुह समये । तह वि तुह चलण-कित्तं कइत्तणं होज्ज पउमस्स ।। रइयं पास-पुराण भमिया पुहवी जिणालया दिट्ठा । इण्इं जीविय-मरण हरिसविसाओ ण पउमस्स ।। सावय-कुर्लाम्म जम्मो जिणचलणाराहणा कइतं च । एया. तिण्णि जिणवर भवि भवे हुतु पजमस्स ।।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २०५