Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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आया है। कर्मसिद्धान्त और सृष्टिविद्याके सम्बन्धमें अनेक महत्त्वपूर्ण बातें बतलायी गयी है। ___ काव्यको दृष्टि से भी यह ग्रन्थ कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसमें महाकाव्यके सभी लक्षण घटित होते हैं । आचार्य ने षड़ऋतु, सन्ध्या, रात्रि, नदी, वन, पर्वत, सूर्योदय, चन्द्रोदय आदिका सुन्दर चित्रण किया है । यहाँ उदाहरणार्थ चन्द्रोदय वर्णनकी कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत की जाती हैं
ऐल्वंतरि भुअणहा सुहु जणंतु णहि उइउ चंदुतम भाहणंतु । आणंद-जणणु परमत्थ-गब्भु अवयरिउ णाइ पह अमिय-कुंभु । चंदुग्गमे वियसिय कुमुभ-संड मजलिय सरेहि पंकय-उडंड। सास-सोमु विलिमिह णत सूहाइ सुरुग्गम विडसड़ गुणह जाइ । अहवा जगि जो जसु ठियउ चित्ति गुण-रहिउ वि सम्मड देइ तित्ति । मयलंछण-किरणहिं तिमिरु णठ जोण्हाणल परिपुण्ण दिदछ । कोडतह मिहुणहँ सुक्षु जाउ रोमंचित तणु उच्छलिज राउ । पिसि भीसण अलि-उल-सम-सदोस तम-रहिय ससकें किय सत्तोस ।
बहु-दोष वि अहवा महिल होइ परिंगरिय सुपुरिसें सोह देइ । घत्ता--हु सयलु विकिउ अकलंकिउ थिउ सकलंकित चंद-सणु ।
णिय-कज्जहो विउस वि भुल्लाहि गरवर किं पुणु इयर-जणु' !
इसी समय संसारको सुख पहुंचाता हआ तथा अन्धकारपटलका नाश करता हुआ चन्द्रमा नभमें उदित हुआ। आनन्दको उत्पत्ति करनेवाला तथा परमार्थभावको धारण करनेवाला वह चन्द्र नभमें अमसकुम्भके समान अवतरित हुआ । चन्द्रोदयके समय कुमुदसमह विकसित हुआ तथा सरोवरोंमें विकसित कमल मुकुलित हुए। सौम्यचन्द्र भी नलिनीको नहीं सुहाता। वह सूर्योदयपर ही प्रफुल्लित होती है और गुणोंका उत्कर्ण प्राप्त करती है। अथवा इस संसारमें जो जिसके चित्तमें बसा हुआ है, वह गुणहीन होते हुए भी उसकी तृप्ति करता है। चन्द्रमाकी किरणोंसे अन्धकारका नाश हुआ तथा गगन ज्योत्स्नाजलसे परिपूर्ण दिखलायी दिया 1 क्रीड़ामें आसक्त युगलोंको सुख प्राप्त हुआ, उनके शरीरमें रोमांच हुआ और अनुराग उमड़ पड़ा। भ्रमरसमूहके समान काली एवं भीषण रात्रिको चन्द्रमाने तमरहित और शोभायुक्त बनाया अथवा अत्यधिक दोषपूर्ण व्यक्ति भी सत्पुरुषको संगतिमें शोभित होता है । चन्द्रमाने समस्त आकाशको कलंकरहित किया किन्तु स्वयं चन्द्रमाका शरीर कलंक युक्त १. पासणाहचरिउ--१०।११। २१८ : तीर्थकर महावीर और उनकी पाचार्य-परम्परा