Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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माणूर हो उस व्यक्तिका ना होता है । प्रकृति विपर्यास होना भी शीघ्रमृत्युका सूचक है | जिसका स्नान करनेके अनन्तर वक्षस्थल पहले सूख जाये तथा अवशेष शरीर गीला रहे, वह व्यक्ति केवल पन्द्रह दिन जीवित रहता है। इस प्रकार पिण्डस्थ अरिष्टोंका विवेचन १७ वीं गाथासे लेकर ४० वीं गाथा तक २४ गाथाओंम विस्तारपूर्वक किया है ।
द्वितीय श्रेणी में पदस्थ अरिष्टों द्वारा मरणसूचक चिह्नोंका वर्णन करते हुए लिखा है कि स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण कर सुगन्धित द्रव्य तथा आभूषणसे अपनेको सजाकर जिनेन्द्र भगवानुकी पूजा करनी चाहिये । पश्चात् - "ओं ह्रीं णमो अरिहंताणं कमले कमले विमले- विमलं उदरदेवि इटिमिटि पुलिन्दिनी स्वाहा” इस मन्त्रका २१ बार जाप कर बाह्य वस्तुओंके सम्बन्धोंसे प्रकट होने वाले मृत्युसूचक लक्षणोंका दर्शन करना चाहिये ।
उपयुक्त विधिके अनुसार जो व्यक्ति संसारमें एक चन्द्रमाको नाना रूपोंमें तथा छिद्रोंसे परिपूर्ण देखता है उसका मरण एक वर्षके भीतर होता है । यदि हाथ की हथेलीको मोड़नेपर इस प्रकारसे सट सके जिससे चुल्लू बन जाये और एक बार ऐसा करनेमें देर लगे, तो सात दिनकी आयु समझनी चाहिये । जो व्यक्ति सूर्य, चन्द्र एवं ताराओंको कान्तिको मलिनस्वरूपमें परिवर्तन करते हुए एवं नाना प्रकारसे छिद्रपूर्ण देखता है, उसका मरण छह मासके भीतर होता है । यदि सात दिनों तक सूर्य, चन्द्र एवं ताराओंके बिम्बोंको नाचता हुआ देखे, तो निःसन्देह उसका जीवन तीन मासका समझना चाहिये । इस तरह दीपक, चन्द्रबिम्ब, सूर्यबिम्ब, तारिका, सन्ध्याकालीन रक्तवर्ण घूमधूसित दिशाएँ, मेघाच्छन आकाश एवं उल्काएं आदिके दर्शन द्वारा आयुका निश्चय किया जाता है। इस प्रकार ४१वीं गाथा तक २७ गाथाओं में पदस्थ रिष्टका वर्णन आया है ।
तृतीय श्रेणी में निजच्छाया, परच्छाया और छायापुरुष द्वारा मृत्युसूचक लक्षणोंका बड़े सुन्दर ढंगसे निरूपण किया है। प्रारम्भ में छायादर्शनकी विधि बतलाते हुए लिखा है कि स्नान आदिसे पवित्र होकर -- 'ओं ह्रीं रक्ते रक्ते रक्तप्रिये समस्त समारूढे कूष्माण्डी देवि मम शरीरे अवतर अवतर छायां सत्यां कुरु कुरु ह्रीं स्वाहा' इस मन्त्रका जप कर छायादर्शन करना चाहिये । यदि कोई रोगी व्यक्ति जहां खड़ा हो, वहाँ अपनी छाया न देख सके या अपनी छायाको कई रूपोंमें देखे अथवा छायाको बेल, हाथी, कौआ, गदहा, भैंसा और घोड़ा आदि नाना रूपों में देखे तो उसे अपना ७ दिनके भीतर मरण समझना चाहिये । यदि कोई अपनी छायाको काली, नीली, पोली और लाल देखता है, तो वह
२०० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा
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