Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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तस्यासीत्सुविशुद्धदृष्टिविभवः सिद्धान्तपारंगतः 1 शिष्यः श्रीजिनचन्द्रनामकलितश्चारित्रचूडामणिः ॥ शिष्यो भास्करनन्दिनामविबुधस्तस्याभवत्तश्ववित् । तेनाकारि सुखादिबोधविषया तत्त्वार्थवृत्तिः स्फुटम् ||
सुखबोधिक टीकाका निश्चित समय ज्ञात नहीं है । पर पं० शान्तिराज शास्त्रीने इसका रचना काल वि० सं० १३५३ के लगभग माना है । ग्रन्थके अन्त रंग परीक्षण करनेसे ये जिनचन्द्र सिद्धान्तसारके कर्ता प्रतीत नहीं होते हैं ।
जिनचन्द्र नामके एक अन्य सिद्धान्तवेना विद्वान् और हुए हैं । ये धर्म संग्रहश्रावकाचारके कर्त्ता मेधावीके गुरु और पाण्डवपुराणके कर्ता शुभचन्द्रके शिष्य थे । तिलोयपत्तिकी दान- प्रशस्तिमें इनका परिचय निम्न प्रकार दिया गया है
अथ श्रीमूलसंघेऽस्मिन्नन्दिसंघेऽनघेञ्जनि । बलात्कारगणस्तत्र गच्छः सारस्वतस्त्वभृत् ॥ तत्राजनि प्रभाचन्द्रः सूरिचन्द्राजितांगजः । दर्शनज्ञानवीर्यसमन्वितः ॥ श्रीमाम्बभूव मार्तण्डस्तत्पट्टदयभूधरं । पद्यनन्दी बुधानन्दी तमच्छेदी मुनिप्रभुः ॥ तत्पट्टाम्बुधिमच्चन्द्रः शुभचन्द्रः सतां वरः । पंचाक्षवनदावाग्निः कपक्ष्माधराशनिः ॥ तदीयपट्टाम्बरभानुमालीक्षमादिनानागुणरत्नमाली । भट्टारकथीजिनचन्द्रनामा सैद्धान्तिकानां भुत्रियोस्ति मोभा ॥
सरस्वतीइस दानप्रशस्ति में मेधावीने अपनी गुरुपरम्पराका परिचय देते हुए गच्छके प्रभाचन्द्र - पद्मनन्दि शुभचन्द्रके शिष्य जिनचन्द्रका उल्लेख किया है । जो सैद्धान्तिकोंकी पंक्ति में परिगणित थे । उक्त प्रशस्ति वि०स० १५१० में लिखी गयी है । उस समय जिनचन्द्र वर्तमान थे। सिद्धान्तसारकी प्रभाचन्द्र द्वारा निर्मित एक कन्नड़ टीका भी 'जैन सिद्धान्त भवन आरामें है । यह टीका कब लिखी गयी इसका कोई निर्देश नहीं है । 'कर्नाटक कविचरिते में प्रभाचन्द्रका समय १३ वीं शताब्दी अनुमानित किया है । अतः उक्त दोनों ही जिनचन्द्र सिद्धान्तसारके रचयिता नहीं हैं ।
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सिद्धान्तसारग्रन्थका अध्ययन करने से यह ज्ञाता होता है कि इस ग्रन्थपर गोम्मटसार जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड इन दोनोंका प्रभाव है। आचार्य नेमिचन्द्रके गोम्मटसारका अध्ययन कर ही इस ग्रन्थकी रचना जिनचन्द्रने की है। सिद्धा
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : १८५