Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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इन पंक्तियोंसे स्पष्ट है कि श्रीपतिने इनके गणितसारके अनुकरणपर ही अपने गणितग्रन्थकी रचना की है। श्रोमितिलकसूरिने अपनी तिलक नामक कृतिमें गणित्तसारका आधार लेकर गणितविषयक महताओं का निर्देश किया है । इन्होंने अपनी वृत्तिमें श्रीधराचार्य के सिद्धान्तोंको न्यानोकी तरह कला दिया है'। इस ग्रन्थकी जो पाण्डुलिपि प्राप्त है, उसमें ४५ ताड़पत्र हैं, प्रति पत्र में छः पंक्तियां और प्रति पंक्ति ८५ अक्षर हैं। पाण्डुलिपिका मंगलाचरण निम्न प्रकार है...
मत्वा जिनं स्वविरचितपाट्या गणितस्य सारमुद्धृत्य | लोकव्यवहाराय श्रीधराचार्यः ॥
प्रत्रक्ष्यति त्रिशतिकाकी जो मुद्रित प्रति पायी जाती है, उसमें 'जिन' के स्थान पर 'शिव' पाठ मिलता है | मंगलाचरण बदलनेकी प्रथा केवल इसी ग्रन्थ तक सीमित नहीं है, किन्तु और भी कई लोकोपयोगी ज्योति और आयुर्वेद ग्रंथोंमें मिलती है । ज्योतिष और आयुर्वेद दोनों विषय सर्वसाधारण के लिए उपयोगी रहे हैं, जिससे लिपिकर्ताओं या सम्पादकोंकी कृपासे मंगलाचरणों में परिवर्तन होता रहा है । मानसागरी में भी यह परिवर्तन देखा जा सकता है।
ज्योतिर्ज्ञानविधि
ज्योतिषशास्त्रका यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसमें करण संहिता और महत इन तीनों विषयोंका समावेश किया है । यह ग्रन्थ दस प्रकरणों में विभक्त है१. संज्ञाधिकार – ज्योतिष विषयक संज्ञाएँ वर्णित हैं ।
२. तिथ्याधिकार - तिथिसाधन, तिथिशुद्धि आदि । ३-४ संक्रान्ति - ऋत्वहोरात्रिप्रमाणाधिकार ।
५. ग्रहनिलयाधिकार !
६. ग्रहयुद्धाधिकार 1
७. ग्रहणाधिकार ।
८. लग्नाधिकार ।
९. गणिताधिकार ।
१०. मुहूर्त्ताधिकार 1
इसके प्रारम्भमें साठ संवत्सर, तिथि, नक्षत्र, वार, योग, राशि एवं कराणोंके नाम तथा राशि, अंश, कला, विकला, घटी, पल आदिका वर्णन किया गया
। द्वितीय परिच्छेद में मास और नक्षत्र ध्रुवाका विस्तारसहित विवेचन किया है । इस प्रकरणके प्रारम्भमें शक संवत् निकालनेका सुन्दर करणसूत्र दिया है ।
१. गणिततिलक वृत्ति पृ० ४ ९ ११ १७, ३९ ।
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प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य: १९३