Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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२. ज्योतिर्ज्ञानविधि – करण विषयक ज्योतिष ग्रन्थ
३ जातकतिलक— जातक सम्बन्धी फलित ग्रन्थ ( कन्नड़ भाषा ) |
४. बीजगणित बीजगणितविषयक गणित ग्रन्थ ।
गणितसार
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गणितसार गणितविषयक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थके अन्त में निम्नलिखित पद्य प्राप्त होता है ।
उत्तरतो हिमनिलयं दक्षिणतो मलयपर्वतं यावत् । प्रागपरोदधिमध्ये नो गणकः श्रीधरादन्यः ॥
इससे स्पष्ट है कि श्रीधराचार्यको कीर्ति कौमुदी उस समय समस्त भारतमें व्याप्त थी । ज्यौतिषशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान् महामहोपाध्याय पं० सुधाकर द्विवेदी ने इनकी प्रशंसा करते हुए लिखा है
"भास्करेणाऽस्यानेके प्रकारास्तस्करवदपहृताः । अहो सुप्रसिद्धस्य भास्करादितोऽपि प्राचीनस्य विदुषोऽन्यकृतिदर्शनमन्तरा समये महान् संशयः । प्राचीना एकशास्त्रमात्रै कवेदिनो नाऽऽसन् ते च बहुश्रुता बहुविषयवेत्तार आसन्नत्र न संशयः । "
इन पंक्तियोंसे स्पष्ट है कि श्रीधराचार्यके गणितसम्बन्धी अनेक नियमोंको भास्कर जैसे घुरन्धर गणकोंने ज्यों-का-त्यों अपना लिया है।
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गणितसार या त्रिशतिकाकी नागरी अक्षरोंमें लिखी प्रति श्री पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य काशी द्वारा संस्कृतटीकासहित प्राप्त हुई थी । इस प्रतिके संक्षिप्त टिप्पणों के आधारपर इतना ही कहा जा सकता है कि यह गणितका अद्भुत ग्रन्थ है |
इसमें अभिन्न गुणन, भागहार, वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल, भिन्नसमच्छेद, भागजाति, प्रभागजाति, भागानुबन्ध भागमातृजाति, त्रैराशिक, पंचराशिक, सप्तराशिक, नवराशिक, भाण्ड, प्रतिभाण्ड, मिश्रव्यवहार, भाजकव्यवहार, एक पत्रोपकरण, सुवर्णगणित, प्रक्षेपकगणित, समक्रिय विक्रयगणित, श्रेणिव्यवहार, क्षेत्रव्यवहार एवं छायाव्यवहारके गणित उदाहरणसहित दिये गये हैं । इस ग्रन्थका जैन एवं जैनेतरोंमें अधिक प्रचार रहा है। गणिततिलककी संस्कृतभूमिकामें कहा गया है
" गीर्वाणगीगुम्फितो मनोरमविविधच्छन्दोनिबद्धः सपादशतपद्यप्रमितो गणिततिलकसंज्ञकोऽयं ग्रन्थः श्रीधराचार्यकृतत्रिंशत्याधारेण निर्मित्त इत्यनुमीयते कतिपयानां पञ्चानां साम्यावलोकनेन ।"
१ गणक तरंगिणी, पृ० २४ ।
१९२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी वाचार्यपरम्परा