Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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है कि यह कुम्भनगर भरतपुरके निकट 'कुम्हर', 'कम्भेर' अथवा 'कुम्भेरी' नामका प्रसिद्ध स्थान ही है। महामहोपाध्याय स्व० डा. गौरीशंकर हीराचन्द जो भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि लक्ष्मीनिवास कोई साधारण सरदार रहा होगा तथा कुम्भनगर भरतपुरक निफैटवाला कुम्भेरी, कुम्भेर या कुम्हर ही है, क्योंकि इस ग्रन्थकी रचना शौरसेनी प्राकृतमें हुई है । अतः यह स्थान शौरसेन देशके निकट ही होना चाहिए । कुछ लोग कुम्हागर कुम्भलगढ़को मानते हैं, पर उनका यह मानना ठोक नहीं बँचता, क्योंकि यह गढ़ तो दुर्गदेवके जीवनके बहुत पीछे बना है।
कुम्भराणा द्वारा विनिर्मित मसिन्दा किलेका कुम्भ-विहार भी यह नहीं हो सकता है, क्योंकि इतिहास द्वारा इसकी पुष्टि नहीं होती है। अतएव रिष्टसमुच्चयका रचगास्थान शरसेन देशके भीतर भरतपुरके निकट वर्तमानका कुम्हर या कुम्मेर है। दुर्गदेवके समय में यह नगर किसी पहाड़ीके निकट बसा हुआ होगा, जहाँक शान्तिनाथ जिनालयों इसकी रचना की गया है। यह नगर उस समय रमणीक और भव्य रहा होगा। किसी बंशावलीमें लक्ष्मीनिवासका नाम नहीं मिलता है। अतः हो सकता है कि वह एक छोटा सरदार जाट या जंदन राजपूत रहा हो। यह स्मरणीय है कि भरतपुरमें जाटोंका शासन रहा है जो अपनेको मदनपालका वंशज कहते थे । इतिहास में मदनपालको जदन राजपूत बतलाया गया है। यह टहनपालके, जो ११वीं शताब्दी में बयानाके शासक थे, तृतीय पुत्र थे । अत: इससे भी कुम्भनगर भरतपुरके निकटवाला कुम्हर ही सिद्ध होता है। बुगदेवका पारिवस्य
रिष्टसमुच्चयकी प्रशस्तिमें संयमदेव और दुर्गदेव-इन दोनोंकी विद्वत्ताका वर्णन बाया है । दुर्गदेवके गुरु संयमदेव षडदर्शनके ज्ञाता, ज्योतिष, व्याकरण और राजनीतिमें पूर्ण निष्णात थे। वे वादिरूप मदोन्मत्त हाथियोंके झुण्डको पराजित करनेके लिए सिंहके समान थे | ये सिद्धान्तशास्त्रके पारगामी थे और मनियों में सर्वश्रेष्ठ थे। इन यशस्वी यमदेवके शिष्य दुर्गदेव भी विशद्ध चरित्रवान् और सकलशास्त्रोंके मर्मज्ञ पण्डित थे । लिखा है
संजाओ इहतस्स चारुचरिओ नाणं बुद्धोयं ( धोया ) मई सोसो देसजई सं (वि) बोहणयरो गोसेसबुद्धागमो । नामेणं दुग्गएव विदिओ दागीसरायण्णओ
तेणेदं रइयं विसुद्धमइणा सत्थं महत्थ फुडं ।' १. रिष्टसमुच्चय, गापा--२५८ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : १९७