Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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८. पूजनविधि प्रकरण | ९. नीराजनविधि ।
१०. शिष्यपरीक्षा एवं शिष्यप्रदेयस्तोत्र आदि विवरण |
प्रथम परिच्छेद ३५ पद्म हैं। मंगलाचरणके पश्चात् ज्वालामालिनी देवीके स्वरूपका वर्णन किया गया है । पश्चात् ग्रन्थरचनाका कारण बतलाते हुए कमलीकी कथा अंकित है । कमलश्रीको ग्रहबाधा थी, जिसे ज्वालामालिनीदेवी द्वारा मन्त्र प्राप्त कर दूर किया गया। इसी परिच्छेदमें गुरुपरम्पराका भी उल्लेख आया है । इस परम्परा बताया है कि कन्दर्प नामक भुनिने इस मन्त्रशास्त्रका उपदेश गुणनन्दिको दिया और इन्द्रनन्दिने इन दोनोंसे इस ग्रन्थका अध्ययन किया । २८वें पद्यमें ग्रन्थको विषयानुक्रमणिका अंकित है । ३०वें पद्यसे ३५ वें पद्यपर्यन्त मन्त्रसाधकका लक्षण दिया गया है । मन्त्रसाधना करने वालेको गुरुभक्त, सत्यवादी, चतुर, ब्रह्मचारी और भक्तिपरायण होना चाहिये ।
द्वितीय परिच्छेद में ग्रहोंसे अभिभूत होने वाले व्यक्तियोंके लक्षणों का वर्णन है । ग्रहोंके दिव्य और अदिव्य दो भेद कर कौन ग्रह किसको पीड़ा पहुंचाता है, इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। ग्रहोंको कीलित करनेके लिये बीजाक्षर और ध्वनियाँ भी निबद्ध की गयी हैं। इस परिच्छेदमं २२ पद्य हैं ।
तृतीय परिच्छेद में सकलीकरण क्रियाका शरीरके अंग और उपांगोको किनकिन बीजाक्षरों द्वारा शुद्ध और रक्षित किया जा सकता है इसका भी वर्णन आया है । मन्त्रों में जया, बिजया, अजिता अपराजिता, जम्भा, मोहा, गौरी और गान्धारी इन देवियोंके लिए कौन-कौन बीजाक्षर जोड़कर मन्त्र तैयार किये जाते हैं, इसका विवेचन आया है । इस परिच्छेदके अन्तमें ४ रक्षामन्त्र हैं, जिनके द्वारा शरीर, स्थान, आसन आदिको रक्षा की जाती। इस परिच्छेदमें कुल ८३ पद्य है । ज्वालमालिनीका ध्यान करनेकी विधि ग्रहनिग्रहनिधान, भूताख्य गायत्रीमन्त्र और उसकी शक्ति, कामार्थक मन्त्र और उसकी तर्जनी मुद्रा, भंजनमन्त्र, भंजनमुद्रा, आध्यायनमन्त्र, आध्यायनमुद्राके वर्णनके पश्चात् बीजाक्षरोंका ज्ञान और महत्व वर्णित है। बीजोंकी शक्तिय तथा द्वादश विधि-वीजाक्षर एवं साधना विधि भी बतलायी गयी है ।
चतुर्थ परिच्छेद ४४ पद्य हैं। इस परिच्छेदके प्रारम्भमें मण्डल बनानेकी विधि निबद्ध है । मन्त्रसिद्धिके लिए आठ हाथ चौरस भूमिमें मण्डल बनाया जाता है । मण्डल पांच रंगोंके चूर्णेस चार द्वारों वाला एवं अनेक प्रकारकी ध्वजापताकाओं से युक्त होता है। पुरुष प्रवेश करनेके योग्य द्वार पर पीपलके
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य: १८१