Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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आदिके नियम भी प्रतिपादित किये गये हैं ।
मानुषोत्तर पर्वतसे आगे स्वयम्भूरमण द्वीपके मध्य में स्थित नगेन्द्र पर्वत तक असंख्यात द्वीपोंमें युगलरूप में उत्पन्न होनेवाले तिर्यञ्च जी रहते हैं । यहाँ पर सदा तीसरा काल विद्यमान रहता है । नगेन्द्र पर्वतसे आगे स्वयम्भूरमणद्वीप एवं स्वयम्भूरमणसमुद्र में दुःषमकाल, देवों में सुपम- सुषम, नारकियोंमें अतिदुःषम तथा तिर्यंचों और मनुष्यों में छहों काल रहनेका उल्लेख किया है ।
तृवीय उद्देश्य २४६ वा है।
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देश भवान्- शिखरी, महाहिमवान् रुक्मि, और निषेध-नील कुलाचलोंके विस्तार, जीवा, धनुपृष्ठ, पार्श्वभुजा, चूलिकाका प्रमाण बतलाकर उनके ऊपर स्थित कूटोंके नामोंका निर्देश किया है ! इन कूटोंके ऊपर जो भवन स्थित हैं, उनका भी वर्णन किया गया है । तत्पश्चात् कुलाचलोके ऊपर स्थित पद्म और महापद्म आदि सरोवर और उनमें स्थित कमलभवनों पर निवास करनेवाली श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि एवं लक्ष्मी इन छह देवियोंकी विभूतियोंका वर्णन किया गया है। पद्महृदमें स्थित समस्त कमल-भवन १४०११६ हैं | जम्बू और शाल्मलिवृक्षोंके ऊपर स्थित भवन भी इतने ही हैं । इन वृक्षोंके अधिपति देवोंकी चार महिषियोंके भवन १४०१२० बतलाये गये है । यहाँके जिन भवनोंकी संख्या भी गिनायी गयी है । पद्मदके पूर्वाभिमुख तोरणद्वार से गंगा महानदी निकलती है । यह नदी हिमवान् पर्वतके ऊपर पूर्वकी ओर ५०० योजन जाकर पुनः दक्षिणकी ओर मुड़ जाती है । इस प्रकार पर्वतके अन्त तक जाकर वहाँ जो वृषभाकार नाली स्थित है, उसमें प्रविष्ट होती हुई वह पर्वतके नीचे स्थित कुण्डमें गिरती है । यह गोलकुण्ड ६२३ योजन विस्तृत और १० योजन गहरा है। इसके बीचोंबीच एक आठ-योजन विस्तृत द्वीप और उसके भी मध्यमें पर्वत है । पर्वतके ऊपर गंगादेवीका गंगाकूट नामक प्रसाद है । गंगानदीकी धारा उन्नत भवनके शिखर पर स्थित जिनप्रतिमाके ऊपर पड़ती है । यहसि निकलकर वह गंगानदी दक्षिणकी ओर जाकर बिजयाकी गुफा में जाती हुई पूर्व समुद्रमें गिरती है। इस प्रसंग में कुण्ड, कुण्डद्वीप, कुण्डस्थ पर्वत, तदुपरिस्थ भवन और तोरण आदिका विस्तार प्रतिपादित किया गया है । अन्तमें हैमवत, हरिवर्ष, रम्यक और हैरण्यवत इन चार क्षेत्रोंके मध्य में स्थित नाभिगिरि पर्वतका वर्णन करते हुए इन क्षेत्रोंमें प्रवर्तमान कालोंका पुनः निर्देश करके भोग भूमियोंकी व्यवस्था प्रतिपादित की गयी हैं ।
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चतुर्थ उद्देश्य में २९२ गाथाएँ हैं । इसमें सुमेरुके वर्णनके साथ लोककी आकृति, उसका विस्तार, ऊँचाई आदिका कथन किया है। लोकके मध्यभागमें स्थित असंख्यात द्वीप समुद्रोंके मध्यमें जम्बूद्वीप है और उसके मध्यमें विदेह क्षेत्र
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य: ११३
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