Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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कोष
देनेकी व्यवस्था करना विग्रह है । विग्रहके समय राजाको अपनी शक्ति, और बल — सेनाका अवश्य विचार करना चाहिये ।
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यान
'अभ्युदयो यानं' – शत्रुके ऊपर आक्रमण करना, या शत्रुको बलवान समझकर अन्यत्र चला जाना यान है ।
असन
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'उपेक्षणमासनं' – यह एक प्रकारसे विराम सन्धिका रूपान्तर है। जब उभयपक्षका सामर्थ्य घट जाये, तो अपने- अपने शिविरमें विश्रामके लिए आदेश देना अथवा मन्त्री, परपक्ष और स्वस्वामीकी शक्ति एवं सैन्य संख्या समान देखकर अपने राजाको एकभावस्थान लेनेका आदेश देना आसन है ।
संय
'परस्यात्मार्पणं संश्रयः'– शत्रुसे पीड़ित होनेपर या उससे क्लेश पानेकी आशंका होनेपर अन्य किसी बलवान राजाका आश्रय लेना संश्रय है । द्वैधीकरण
" एकेन सह सान्ध्यमन्येन सह विग्रहकरणमेकेन वा शत्री सन्धानपूर्वं विग्रहो द्वैधीभावः " - जब दो शत्रु एक साथ विरोध करें, प्रथम एकके साथ सन्धि कर दूसरेसे युद्ध करे और जब वह पराजित हो जाये, तो प्रथमके साथ भी युद्ध कर उसे भी हरा दे ! इस प्रकार दोनोंको कूटनीतिपूर्वक पराजित करना या मुख्य उद्देश्य गुप्त रखकर वैरंगमें शत्रुसे सन्धि कर अवसर प्राप्त होते ही अपने उद्देश्य अनुसार विग्रह करना द्वैधीकरण है । यह कूटनीतिका एक अङ्ग है । इसमें बाहर कुछ और भीतर कुछ भाव रहते हैं ।
भेव
जिस उपाय द्वारा शत्रुकी सेनामेंसे किसीको बहकाकर अपने पक्षमें मिलाया जाये अथवा शत्रुदल में फूट डालकर अपना कार्य साध लिया जाये, मेद है । इस प्रकार चतुरंग राजनीतिका भी भेद-प्रभेदपूर्वक नीतिवाक्यामृतमें वर्णन आया है। राजा अपनी राजनीतिके बलसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश बन जाता है । जनताके जान-मालकी रक्षा के लिए नियम, उपनियम और विज्ञान भी राजाको हो बनाना होता है । राजाको प्रधानतः नियम और व्यवस्था, परम्परा और रूढ़ियोंका संरक्षक होना अनिवार्य है ।
सोमदेवसूरिने राज्यका लक्ष्य धर्म, अर्थ और कामका संबर्द्धन माना है। धर्म सवर्द्धनसे उनका अभिप्राय सदाचार और सुनीतिको प्रोत्साहन देना तथा जनता
८२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा