Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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सारागमाहितमतिविदुषां प्रपूज्यो नानातपोविधिविधानकरो विनेयः । तस्याभवद् गुणनिधिर्जनताभिवन्द्यः श्रीसदपूर्वपदको हरिषेणसंज्ञः ॥ अर्थात् मौनी भट्टारकके शिष्य भरतर्षण और श्रीहरिषेणके श्रीहरिसेन, भरतमेनके हॉपेष प्रस्तुत गिने अपने गुण मरतन उन्होंने छन्द, अलंकार, काव्य, नाटक आदि शास्त्रोंका ज्ञाता, काव्यका रचयिता, वैयाकरण, तर्कनिपुण और तत्त्वार्थवेदी बतलाया है। इससे स्पष्ट है कि हरिषेणके दादागुरुके गुरु मौनी भट्टारक जिनसेनकी उत्तरवर्ती दुमरी, नीगरी पोढ़ीमें हो हुए होंगे। हरिषेण पुन्नाट संघके आचार्य है और इसी पुन्नाट संघ में हरिवंगपुराणके कर्त्ता जिनसेन प्रथम भी हुए हैं ।
हरिषेणने कथाकोपकी रचना बर्द्धमानपुरमें की है। इस स्थानको डॉ ए० एन० उपाध्ये काठियावाड़का बड़वान मानते हैं। पर डॉ० हीरालाल जनने इसे मध्यभारत के धार जिलेका बधनावर सिद्ध किया है । वृहत् कथाकोपकी रचना वर्धमानपुर में उस समय की गयी थी, जबकि चहाँपर विनायकपालका राज्य वर्तमान था । उसका यह राज्य शक्र वा इन्द्रके समान विशाल था । यह विनायक - पाल गुर्जर प्रतिहार वंशका राजा है । इसके साम्राज्य की राजधानी कन्नौज थी । 'उस समय प्रतिहारोंके अधिकारमें केवल राजपूतानेका हो अधिकांश भाग नहीं वा, अपितु गुजरात, काठियावाड़, मध्यभारत और उत्तर में सतलजसे लेकर बिहार तकका प्रदेश शामिल था । यह विनायकपाल महाराजाधिराज महेन्द्रपाल - का पुत्र था और भोज द्वित्तीयके बाद राज्यासीन हुआ था । कथाकोशकी रचनाके लगभग एक वर्ष पहले ( वि० स० ९५५ ) का एक दानपत्र मिला है । इस दानपत्रसे भी विनायक पालकी स्थिति स्पष्ट होती है ।
स्थितिकाल
हरिषेण कथाकोशकी प्रशस्तिमें बताया है
नवाष्टनवकेष्वेषु स्थानेषु त्रिषु जायतः । विक्रमादित्यकालस्य परिमाणभिदं स्फुटम् || शतेष्वष्टसु विस्पष्टं पञ्चाशत्यधिकेषु च । शककालस्य सत्यस्य परिमाणमिदं भवेत् ॥ संवत्सरे चतुविंशे वर्तमाने खराभिधे । विनयादिकपालस्य राज्ये शक्रोपमानके ॥
१. बृहत् कथाको
सिंधी सिरीज, प्रशास्ति, पद्य, ३-५ ।
२. राजपूतानेका इतिहास, जिल्द १, पृ० १६३ तथा इण्डियन एन्टीक्वयरी, वाल्यूम १५, पेज १४०-१४१ ।
३. बृहत् कथाकोश, सिंधी सीरीज, प्रशस्ति, पद्य ११-१३ ।
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प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापशेषकाचार्य: ६५