Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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राज्जनोंके पुण्यके कारण यह काव्यरूपी दूध उत्पन्न हो रहा है । पाण्डित्यके सम्बन्धमें स्वयं लिखा है
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लोकोक्तिः कलारछन्दोऽलङ्काराः समयागमाः । सर्वसाधारणाः सद्भिस्तीर्थभागों व स्मृताः ॥
व्याकरण, प्रमाण, कला, छन्द, अलङ्कार और समयागम - दर्शनशास्त्र तीर्थमार्ग के समान सर्वसाधारण हैं ।
सोमदेव के संरक्षक अरिकशरी नामक चालुक्य
यह
राजा के पुत्र वाद्यराज या वद्दिग नामक राजकुमार अमेन सामन्त पदत्रोंबारी था | यशस्तलकका प्रणयन गंगवारा नामक स्थान में रहते हुए किया गया है। धारवाड़, कर्नाटक, महाराष्ट्र और वर्तमान हैदराबाद प्रदेश पर राष्ट्रकूटोंका साम्राज्य व्याप्त था । राष्ट्रकूट नरेश आठव शर्तीस दशवीं शती तक महाप्रतापी और समृद्ध रहे हैं 1 इनका प्रभुत्व केवल भारतवर्षम ही नहीं था, अपितु पश्चिमके अरब राज्यों मे भी व्याप्त था । अरबोंस उनका मत्रव्यवहार था तथा अरब अपने यहाँ उनकी व्यापारको सुविधाएँ दिये हुए थे । इस वशके राजाओंका बिरूद वल्लभराज था | इसका रूप अरबलेखकोंभ बल्लहरा पाया जाता है ।
सोमदेवने अपने साहित्यमं राष्ट्रकूटाके साम्राज्यकं तत्कालीन अभ्युदय का परिचय प्रस्तुत किया है । वस्तुतः राष्ट्रकूटोंक राज्यकालम साहित्य, कला, दर्शन एवं धर्मकी बहुमुखी उन्नति हुई है। कविका यशस्तिलकचम्पू मध्यकालीन भारतीय संस्कृतिके इतिहासका अपूर्व स्रात है ।
सोमदेव भूरि और कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार
नीतिवाक्यामृत और यशस्तिलकचम्पूसे अवगत होता है कि सोमदेवका सम्बन्ध कान्यकुब्ज नरेश महेन्द्रदेवसे रहा है। नीतिवाक्यामृतकी संस्कृतटीकासे भी ज्ञात होता है कि कान्यकुब्ज नरेश महेन्द्रदेवके आग्रहसे इस ग्रन्थकी रचना सम्पन्न हुई थी।"
ज्ञात होता है कि सोमदेवका महेन्द्रदेव के साथ सम्बन्ध रहा है । यशस्तिलक के मंगलपद्य में श्लेष द्वारा कन्नौज और महेन्द्रदेवका उल्लेख आया है ।
१. यशस्तिलक १२० ।
२. "अत्र तावदखिलभूषालमौलिलालितचरणयुगलेन रघुवंशावस्था ग्रिपराक्रमपालित करूय कर्णकुब्जेन महाराजश्रीमन्महेन्द्रदेवेन पूर्वाचार्यकृतार्थशास्त्रदुःख दोषप्रन्थगौरव सिम्ममानसेन संबोधललितलघुनीतिवाक्यामृत रचनासु प्रवर्तितः । " - नीतिवाक्यामृत, माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, पृ० २, संस्कृतटीका ।
प्रबुद्धा एवं परम्परापोषकाचार्य : ७१