Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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देवसूरिने इस विभागका बड़ा भारी दायित्व बतलाया है। राज्यको रक्षा करना और उसकी अभिवृद्धि करना इस विभागका ही काम है । पुलिस विभाग ___ इस विभागकी व्यवस्थाके सम्बन्ध उल्लेख करते हुए सोमदेवसूरिने कोट्टपाल–दण्डपाशिकको इस विभागका प्रधान बतलाया है। चोगे, डकैती, बलात्कार आदिके मामले पलिम द्वारा सुलझाये जाते थे। पुलिसको बड़े-बड़े मामलों में सेनाकी सहायता भी लेने को लिखा है। इस विभागको सुदढ़ करने के लिये गुप्तचर नियुक्त करना आवश्यक है। गाँवोंमें मुखियाको हो पुलिसका उच्चाधिकारी बतलाया है । धन-सम्पत्ति, पशु आदिके अपहरणकी पूरी तहकीकात मुखियाको ही करनी चाहिये । मुखिया अपने मामलोंकी जाँचमें गुप्तचरोंसे भी सहायता ले सकता है । पुलिस-विभागकी सफलता बहुत कुछ गुप्तचरसी० आई० डी० पर ही आश्रित मानी गयी है। गप्तचरोंके गणोंका निरूपण करते हुए बताया है कि सन्तोषी, जितेन्द्रिय, सजग, निरोगी, सत्यवादी, तार्किका और प्रतिभाशाली व्यक्तिको इस महत्वपूर्ण पदपर नियुक्त करना चाहिये । गुप्तन्त्र रके लिए कपटी, धूर्त, मायावी, शकुन-निमित्त-ज्योतिप-विशारद, गायक, नर्तक, विदूषक, वैत्तालिक, ऐन्द्रजालिक होना चाहिए। ___ यों तो ३४ प्रकारके व्यक्तियोंको चर नियुक्त करने पर जोर दिया है। पुलिसविभागकी व्यवस्थाके लिए अनेक कानून भी बतलाये गए है तथा शासनके लिए अनेक कार्यों एवं पदोंका प्रतिपादन किया है। कोष-विभाग
इस विभागका वर्णन करते हुए सोमदेवसूरिने राज्य-संचालनके लिए कोषपर बड़ा जोर दिया है। जो गुजा सम्पत्ति-विपत्तिके लिा कोष सञ्चय करता है, बही अपने राज्यका विकास कर सकता है । कोषमें सोना, चाँदो द्रम्म [मुद्राएँ] एवं धान्यका संग्रह अपेक्षित' है। इन आचार्यने कोषकी महत्ता दिखलानेके १. स्वपरमण्डलकार्याकार्यावलोकने चाराश्च पि क्षितिपतीनाम् ।-नीतिवाक्यामृतम्,
नारसमद्देश्य, सूत्र है। २. अलौल्यममान्य मषाभाषित्व मन्य हकत्वं चेत्ति चारगुणाः । कापटिकादास्थितगृहपतित्रदेव्हिकतापकितवकिरातममपट्टिकाहितुण्डिकशौण्डिकशोभिकपाटाचर विटविदूषकपीरमर्द कनटनतंकगायकवादकवाग्जीवकगणकशाकुनिकभिषगन्द्रजालिकनैमित्तिकसूदारालिकसंवाहिकतीक्ष्णक ररसद्जडभूकबधिरान्धच्छमानस्थापियायिभेदेनावरापवर्ग:--वही, चारसमुद्देश्य, सूत्र २ और ८ । ३. वही, कोशसमुद्देश्य, सूत्र १, २ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परमारापोषकाचार्य : ७९