Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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(१) ई० सन् की ८बौं शताब्दीकी मान्यता । (२) ई० सन् ११वीं शताब्दीको मान्यता ! ( ३ ) ई० सन् १०६५ की मान्यता।
१. आचार्य प्रभाचन्द्रके समयके सम्बन्धमें डॉ० पाठक, आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार आदि प्रभाचन्द्रका समय ८वीं शताब्दीका उत्तरार्द्ध एवं ९वीं शताब्दीका पूर्वार्द्ध मानते हैं। इनका मुख्य आधार है जिनसेन कृत 'आदिपुराण' का निम्नलिखित पद्म, जिसमें प्रभाचन्द्र कवि और उनके चन्द्रोदय ( न्यायकुमुदचन्द्र ) का उल्लेख हुआ है
"चन्द्रांशुशुभ्रयशसं प्रभाचन्द्रकवि स्तुवे ।
कृत्वा चन्द्रोदयं येन शश्वदाल्हादितं जगत् ॥ यहाँ चन्द्रोदयसे तात्पर्य न्यायकुमुदचन्द्रसे लिया गया है । आचार्य जिनसेनने आदिपुराणकी रचना ई० सन् ८४० के लगभग की होगी। अतः उक्त पद्यमें प्रभाचन्द्र और उनके न्यायकुमुदचन्द्रका उल्लेख मानकर डॉ० पाठक आदिने प्रभाचन्द्रका समय ई० सन् की ८ वो शताब्दीका उतारा है।
पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने डॉ० पाठक आदिकी उक्त मान्यताका निरसन करते हुए बताया है कि जिनसेनने आदिपुराणमें जिस प्रभाचन्द्रका स्मरण किया है, वह प्रभाचन्द्र न्यायकुमुदचन्द्रके कर्त्ता प्रभाचन्द्रसे भिन्न हैं। हरिवंशपुराणमें भी जिनसेन प्रथमने एक प्रभाचन्द्रका स्मरण किया है, जो कुमारसेनके शिष्य थे । यथा---
"आकूपारं यशो लोके प्रभाचन्द्रोदयोज्जवलम् ।
गुरोः कुमारसेनस्य विचरत्यजितात्मकम् ।। यदि इन दोनों पुराणोंमें उल्लिखित प्रभाचन्द्र एक ही व्यक्ति हैं, तो वे कुमारसेनके शिष्य होनेके कारण न्यायकुमुदचन्द्रके कसि स्वतः पृथक् सिद्ध हो जाते हैं, क्योंकि उनके गुरुका नाम पद्मनन्दि था। शास्त्रीजीने तर्क उपस्थित करते हुए लिखा है-"न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्रने स्वामी विद्यानन्द और अन्तवीर्यका स्मरण किया है। यदि आदिपुराणमें उल्लिखित प्रभाचन्द्र और उनका चन्द्रोदय प्रकृत प्रभाचन्द्र और उनका ग्रन्थ न्यायकूमुदचन्द्र ही है, तो यह सम्भव प्रतीत नहीं होता कि आदिपुराणकार न्यायकुमुदचन्द्रका तो स्मरण करें, किन्तु उसमें स्मृत आचार्य विद्यानन्द और अनन्तवीर्य सरीखे यशस्वी
१. अन शिलालेखसंग्रह, भाग १, अभिलेख संख्या ५५, पद्य १७, १८ । २. हरिवंशपुराण, ११३८ । ४८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा