Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
इसी प्रकार आत्मानुशामनतिलक के रचयिता भी प्रस्तुत प्रभाचन्द्र' हैं । निश्चयतः आचार्य प्रभाचन्द्र अद्भुत भाष्यकार हैं। इन्होंने जिन टीकाओंका निर्माण किया है वे टीकाएँ स्वतन्त्र ग्रन्थका रूप प्राप्त कर चुकी हैं। अतः प्रमेयकमलमात्तंण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र तत्त्वार्थवृत्तिपदववरण, प्रवचनसारम रोजभास्कर, शब्दाभोजभास्कर, महापुराण टप्पण, गद्यकथाकोश, रत्नकरण्डटीका, समाधितंत्रटीका क्रियाकलापटीका, आत्मानुशासनतिलक आदि टीका ग्रन्थ प्रभाचन्द्रद्वारा रचित हैं, यह स्पष्ट है ।
1
लघु अनन्तवीर्य
जैन न्याय -साहित्यमे ग्रन्थकारके रूपमें दो अनन्तवीर्थ के नामांका उल्लेख मिलता है । इनमें एक अनन्तवीर्य तो वे ही हैं, जिनने अकलंकके सिद्धिवि निश्चयकी टीका लिखी है । प्रभाचन्द्रने न्यायकुमुदचन्द्र में इनका स्मरण किया है । दूसरे अनन्तवीर्य के हैं, जिन्होंने प्रमेयरत्नमाला बनायी है। इस प्रमेयरलमालामें अनन्तवीर्यने प्रभाचन्द्रका उल्लेख किया है । अत: उत्तरकालवर्ती होनेके कारण प्रमेयरत्नमालाके रचयिता अनन्तवीर्यको लघु अनन्तवीर्य या द्वितीय अनन्तवीर्थ कहा जाता है । प्रमेयरत्नमालाक टिप्पण में इनका उल्लेख 'लघु अनन्तवीदेव' के नाम से किया भी गया है। इन्होंने परीक्षामुखके सूत्रोंकी संक्षिप्त, किन्तु विजद व्याख्या को है। साथ ही सङ्गतः चार्वाक, बौद्ध, सांख्य, न्याय, वैशेषिक और मांमांगा दर्शनोंके कतिपय सिद्धान्तोंको आलोचना भी की है।
इनकी एकमात्र कृति 'प्रमेयरत्नमाला' प्राप्त है । ग्रन्थके आरम्भ में इस टीकाको इन्होंने परीक्षामुखञ्जिका कहा है । प्रत्येक समुद्देश्यके अन्तमें दी गयी पुष्पिकाओं में इसे परीक्षामुख लघुवृत्ति भी कहा है।
आचार्य अनन्तवीर्यने ग्रन्थके प्रारम्भमें तथा अन्तिम प्रशस्तिमें उल्लेख किया है कि इन्होंने इस टीकाकी रचना वैजेयके प्रिय पुत्र हीरपके अनुरोधसे शान्तिषेणके पठनार्थकी थी । प्रशस्तिमें वैजेयके ग्रामादिकका कोई निर्देश नहीं है, पर उन्हें बदरीपालवंश या जातिका ओजस्वी सूर्य कहा है। उनकी पत्नीका नाम नागम्बा था, जो अपने विशिष्ट गुणोंके कारण रेवती, प्रभावती आदि नामोंसे उस समय संसारमें प्रसिद्ध थी । उसके दानवीर हीरप नामक पुत्र हुआ, जो सम्यक्त्वरूप आभूषणसे भूषित था और जो लोकहितकारी कार्योंको करनेके लिये प्रसिद्ध था ! उसके आग्रहसे सम्भवतः उन्हींके पुत्र शान्तिषेणके पठनायं इस लघुवृत्तिकी रचना की गयी । यह रचना जैन न्यायके अध्येताओंके लिये विशेष उपयोगी है ।
I
१. विशेष जाननेके लिए देखिए प्रमेयकमलमार्त्तण्डकी प्रस्तावना, १०७६ ७७ । ५२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आधापरम्परा