Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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द्वारा पनन्दि पण्डित देवको दिये गये दानका उल्लेख है। यह दान पौष शुक्ला प्रयोदशी संवत् १०१५ में दिया गया है। इस तरह ई० सन् १०९३ में प्रभाचन्द्रसधर्मा गोपनन्दिकी स्थिति होनेसे प्रभाचन्द्रका ममय सन् १०९३ ईस्वीके पश्चात् नहीं हो सकता है।
वादि देवसूरिने ई० सन् १११८ के लगभग अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ स्याद्वादरत्नाकरकी रचना की है । स्याद्वादरताकरमें प्रभाचन्द्रके प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रका न केवल शब्दार्थानुसरण ही किया गया है, किन्तु कवलाहारसमर्थनप्रकरणमें तथा प्रतिबिम्बचर्चामें प्रभाचन्द्र और प्रभाचन्द्रके प्रमेयकमलमार्तण्डका नामोल्लेख करके खण्डन भी किया है। अतः प्रभाचन्द्रके समयकी उत्तरावधि ई० सन् ११०० सुनिश्चित हो जाती है।
श्री पण्डित महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यने अनेक पुष्ट प्रमाणोंके आधारपर ई० सन् १८० से १०६५ ईस्वी तक प्रभाचन्द्रका समय माना है। 'सुदंसणचरिउ' की प्रशस्तिमें नयनन्दिने माणिक्यनन्दिका उल्लेख किया है । 'सुदसणचरिउ' की समाप्ति वि० सं० ११०० में हई है। अतः माणिक्यनन्दिका समय वि० सं० की ११वीं शताब्दीका पूर्वार्द्ध है। प्रमेयकमलमार्तण्डकार आचार्य प्रभाचन्द्रने माणिक्यनन्दिके समक्ष धारानगरीमें प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रकी रचना की है । आचार्य माणिक्यनन्दि भी धारानगरीमें निवास करते थे। अतः बहुत सम्भव है कि माणिक्यनन्दिसे परीक्षामुखका अध्ययन कर प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्ड रचा हो । डॉ दरबारीलालजी कोठियाके सप्रमाण अनुसन्धानके अनुसार प्रभाचन्द्र और माणिक्यनन्दिकी समसामयिकता प्रकट होती है और उनमें परस्पर साक्षात् गुरु-शिष्यत्व भी सिद्ध होता है। इससे भी आचार्य प्रभाचन्द्रका समय ई० सन्की ११वीं शती निर्णीत होता है। रचनाएँ
इनकी निम्नलिखित रचनाएं मान्य है१. प्रमेयकमलमार्तण्ड : परीक्षामुख-व्याख्या २. न्यायकुमुदचन्द्र : लघीयस्त्रय-व्याख्या ३. तत्त्वार्थवृत्तिपदविवरण : सर्वार्थसिद्धि-व्याख्या ४. शाकटायनन्यास : शाकटायनव्याकरण-व्याख्या ५. शब्दाम्भोजभास्कर : जैनेन्द्रव्याकरण-व्याख्या ६, प्रवचनसारसरोजभास्कर : प्रवचनसार-व्याख्या ७, गधकथाकोष : स्वतंत्र रचना
१. आप्तपरीक्षा, प्रस्तावना १० २७-३३, वीर सेवा मन्दिर संस्करण, १९४९ ।
५० : सोपवर महावीर और उनकी प्राचार्यपरम्परा