Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
समय- विचार
प्रमेय रत्नमालाकी रचना प्रभाचन्द्र के 'प्रमेयकमलमार्त्तण्ड' के पश्चात् की गयी है । प्रमेयरत्नमालाके आरम्भिक पद्योंमें बताया हैप्रमेन्दुवचनोदारचन्द्रिका - प्रसरे सति ।
मादृशाः क्व नु गण्यन्ते ज्योतिरिङ्गण-सन्निभाः ॥ अर्थात्, जब प्रभाचन्द्राचार्यकी वचनरूप उदारचन्द्रिका ( प्रमेयकमल मातंण्ड ) प्रसूत है, तो खद्योतसदृश हम सरीखे मन्दबुद्धियों की क्या गणना हैं ? इससे स्पष्ट है कि वीर्य है और प्रभाचन्द्रका समय ई० सन् की ११वीं शताब्दी है ! उधर आचार्य हेमचन्द्र ( वि० सं० १९४५ - १२३० ) की 'प्रमाणमीमांसा' पर शब्द और अर्थ दोनोंकी दृष्टिसे प्रमेयरत्नमालाका पूरा-पूरा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। अतः अनन्तater समय प्रभाचन्द्र और हेमचन्द्रके मध्य होना चाहिये । इस प्रकार अनन्तवीर्यका समय विक्रमकी १२ वीं शताब्दीका पूर्वार्द्ध प्रतिफलित होता है। डॉ० ए० एन उपाध्येने भी प्रमेयरत्नमालाकार अनन्तवीर्यका यही समय अनुमानित किया है ।
रचना
लघु अनन्तवीर्यकी एकमात्र उपलब्ध रचना यही प्रमेयरत्नमाला है । परीक्षामुखके समान प्रमेय रत्नमालाका भी विषय प्रमाण और प्रमाणाभासका प्रतिपादन है । प्रमेयकमलमार्त्तण्डमें जिन विषयोंका विस्तारसे वर्णन है, उन्हींका संक्षेपमें स्पष्टरूपसे कथन करना प्रमेयरत्नमालाकी विशेषता है। परीक्षामुखके समान इसमें छह समुद्देश्य हैं और उनमें उसीके समान प्रमाणलक्षण, प्रमाणभेद प्रमाणविषय प्रमाणफल, प्रमाणाभास और नयका विवेचन परीक्षामुखकी व्याख्याके रूपमें है । प्रतिपादनशैली बड़ी सरल, विशद और हृदयग्राही है ।
·
वीरनन्दि
आचार्य वीरनन्दि सिद्धान्तवेत्ता होनेके साथ जनसाधारणके मनोभावों, हृदयकी विभिन्न वृत्तियों एवं विभिन्न अवस्थाओं में उत्पन्न होनेवाले मानसिक विकारोंके सजीव चित्रणकर्ता महाकवि थे । इनके द्वारा रचित चन्द्रप्रभ-महाकाव्य इनकी काव्य-प्रतिभाका चूड़ान्त-निदर्शन है। ये नन्दिसंघ देशीयगण के आचार्य है | चन्द्रप्रभके अन्तमें इन्होंने जो प्रशस्ति' लिखी है, उससे ज्ञात होता
१. प्रमेयरत्नमाला, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, ११३ ।
२. चन्द्रप्रभ-चरितम् निर्णय सागर प्रेस बम्बई, सन् १९२६ प्रशस्ति पथ १, तथा ४ |
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषाचार्य : ५३