Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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भाव्यतीतयोगं गणनागद्बोधरनिरिष्यति ॥ तथापराश्रितं हि तद्भावभावित्वम् ॥
षष्ठ अध्याय ५७ सूत्रमें प्रभाकर गुरुकी प्रमाण संख्याका खण्डन किया गया है और इनका समय ई० सन् की वीं शतीका प्रारम्भिक भाग है । इससे भी माणिक्यनन्दिके समय की पूर्वावधि ई० सन् ८०० है । आचार्य प्रभाचन्द्र ( ई० सन् १९००) ने परीक्षामुखपर प्रमेयकमलमार्त्तण्ड नामक टीका लिखी है। अतः प्रभाचन्द्रका समय ( ११वीं शती) इनकी उत्तरावधि है । व्यातव्य है कि डॉ० दरबारीलाल कोठियाने अनेक प्रमाणोंस सिद्ध किया है कि माणिक्यनन्दि प्रभाचन्द्रके साक्षात् गुरु थे । अत: माणिक्यनन्दि उनसे कुछ पूर्ववर्ती (ई० १०२८ के लगभग ) हैं ।
आचार्य नयनन्दीने अपने 'सुदंसणचरिउ' को वि० सं० १५०० में धारानरेश भोजदेव के समय में पूर्ण किया है और अगनेको माणिक्यचन्द्रीका प्रथम शिष्य कहा है
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ववगएसु
एयारहवच्छरमसु । तहि केवलचरिउ अमरच्छरेण णयनंदी विश्यउ वित्रेण ||
अतएव माणिक्यनिन्दका समय नयनन्दी के समय वि० सं० ११०० से ३०-४० वर्ष पहले अर्थात् वि० सं० १०६० ई० सन् १००३ ( ई० सन् की ११वीं शताब्दी का प्रथम चरण ) अवगत होता है ।
रचना
माणिक्यनन्दिका एकमात्र ग्रन्थ 'परीक्षामुख' ही मिलता है। इस ग्रन्थका नामकरण बौद्धदर्शनके हेतुमुख, न्यायमुख जैसे ग्रन्थोंके अनुकरणपर मुखान्त नामपर किया गया है ।
परीक्षामुखमें प्रमाण और प्रमाणाभासों का विशद प्रतिपादन किया गया है । जिस प्रकार दर्पण में हमें अपना प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखलाई पड़ता है उसी प्रकार परीक्षा मुखरूपी दर्पण में प्रमाण और प्रमाणाभासको स्पष्ट रूप से ज्ञात किया जा सकता है ।
यह ग्रन्थ न्यायसूत्र, वैशेषिकसूत्र और तत्त्वार्थसूत्र आदि सूत्रग्रयोंकी तरह सूत्रात्मक शैलीमें लिखा गया है ।
इसके सूत्र सरल, सरस और गम्भीर अर्थ वाले हैं। इसकी भाषा प्राञ्जल
१. परीक्षामुखसूत्र, ३१५८-५९ ।
२. सुदंसणचरिउ, प्रशस्ति कडक ९ प्राकृत शोध संस्थान, वैशाली ३
३. आप्तपरीक्षा, प्रस्तावना, पृ० ३१ ३२, ३३, बीरसेवा मन्दिर - संस्करण, ई० १९४९ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ४३
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