Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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एक अन्य अनन्तवीर्यका निर्देश ई० सन् १११७ के अभिलेखमें उपलब्ध होता है। यह अभिलेख चामराजनगरके पार्श्वनाथस्वामीवस्तिके एक पाषाणपर उत्कीर्ण' है।
एक अनन्तवीर्य वे हैं, जिनका उल्लेख करल्लर गड्डके सिद्धश्वर मन्दिरक पाषाणलेखमें काणूरगणके आचार्योमं शुद्धाक्षग वरदकै रूपमें किया गया है। यह अभिलेख ई० सन् ११२१ का है | इस अभिलखमें माघनन्दि सिद्धान्तदेवके शिष्य प्रभाचन्द्रके साधर्मा अनन्तवीर्य और मुनिचन्द्रका उल्लेख है | अनन्तवीर्यके गृहस्थशिष्य रक्कस गंगदेवने भी इसी समय दान किया था।
एक अनन्तबीय महावादीका उल्लेख हम्मचके तोरण बागिलके उत्तर सम्भके लखमें श्रीपालदेवक लघुसवर्माके रूपमें आया है। ये द्रविड़ संघकं नन्दिगणक आचार्य थे | यह लेख ई० सन् ११०७ का है।
उपयुक्त अभिलखोंस अवगत होता है कि प्रस्तुत अनन्तवीय द्रविड़ संघ नन्दिगण, अरुङ्गलान्यकी परम्परा अनन्तवीयं है । ये वादिराजरे दादागुरु और श्रीपालक लघुराधर्मा हैं। बादिराजका समय ई० सन् १०२५ है। अत: उनके दादामुरु ५० वर्ष पहले अर्थात् ई० सन् २७५ के आस-पास हुए होंगे। ___ अभिलेखाके सूक्ष्म अध्ययनस ऐसा ज्ञात होता है कि प्रस्तुत अनन्तवीर्य काणूरगणक न होकर द्रविड़ संधीय हैं। अकलंकसूत्रक वृत्तिकार दो अनन्तवीर्य । हैं-एक रविभद्रपादोपजीवी और दूसरे इन्ही अनन्तवीर्य द्वारा उल्लिखित सिद्धिविनिश्चयके प्राचीन व्याख्याकार अनन्तवीयं, जिन्हें हम वृद्ध अनन्तवीर्य कह सकते हैं । सिद्धिविनिश्चय-टीकाके कर्ता अनन्तवीर्य ई० सन् १७५ के बाद और ई० सन् १०२५ के पहले किसो समयमें हुए हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि जो अनन्तवीर्य वादिराजके दादागुरु, श्रीपालके सधर्मा रूपसे उल्लिखित है, वहीं सिद्धिविनिश्चयके टीकाकार हैं। अतएव अनन्तवीयंका समय ई० सन् की दशम शताब्दीका उत्तरार्द्ध और ११वीं शताब्दीका पूर्वाद्धं है। पार्श्वनाथचरितमें वादिराजने अनन्तवीर्यको स्तुति करते हुए लिखा है कि उस अनन्त सामर्थ्यशाली मेधक समान अनन्तवीर्यकी स्तुति करता हूँ, जिनकी वचनरूपी अमृतवृष्टिसे जगत्को चाटजाने वाला शून्यवादरूपी हुताशन शान्त हो गया था। इन्होंने 'न्यायविनिश्चविवरण में अनन्तवीर्यको उस दीपशिखाके समान लिखा है, जिससे अकलंकवाङ्मयका गूढ़ और अगाध अर्थ पद-पदपर प्रकाशित होता है ।
१. जन शिलालेखसंग्रह, द्वितीय भाग, पृ. २१२ । २. वही, पृ० ४०८, पृ. ४१६ । ३, वही, भाग २,१० ७२ । ४० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा