Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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१ परिशिष्ट चतुर्थ महाधिकारकी गाथा २४१५ और २४२६ के बीच दश गाथाओंके छूट जाने की सूचना प्रतियोंमें पाई जाती है । प्रसंगको देखनेसे भी यहां जघन्य पातालोंकी स्थिति व विस्तारादि तथा ज्येष्ठ पातालोंके अन्तरसंबंधीं कुछ विषय छूटा हुआ स्पष्ट प्रतीत होता है। यह विषय त्रिलोकसार व जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिके आधारसे इसप्रकार जान पड़ता है...
___ ज्येष्ठ और मध्यम पातालोंके बीचमें अन्तरदिशाओंमें पृथक् पृथक् एकसौ पच्चीस जघन्य पाताल हैं । इनका विस्तारादिक मध्यम पातालोंकी अपेक्षा दशचे भागमात्र है ।
मूलविस्तार १०० । मुखविस्तार १०० । उदय १००० । मध्यविस्तार १००० । भित्तिबाहल्य ५ यो.।
ये पाताल लवणसमुद्रके जलमें पृथक् पृथक् दोनों तटोंसे निन्यानबै हजार नौसौ पचास योजन प्रवेश करनेपर हैं।
लवणसमुद्रकी मध्यम परिधिमेंसे ज्येष्ठ पातालोंके मुखविस्तारको कम करके शेषमें चारका भाग देनेपर ज्येष्ठ पातालोंके अन्तरालका प्रमाण आता है । यह अन्तरालप्रमाण दो लाख सत्ताईस हजार एकसौ सत्तर योजन और तीन कोस अधिक है ।
ल. स. की मध्यम परिधि ९४८६८३ यो. है; ९४८ ६८ ३ - ४ ० ० ० ० = २२७१७०३ यो. ज्येष्ठ पातालोंका अन्तर ।
२ सम्भव पाठ अनेक स्थानोंपर प्रतियोंके पाठ शुद्ध प्रतीत न होने के कारण मूलमें कल्पित पाठ रखे गये हैं और प्रतियोंके पाठ नीचे टिप्पणमें दे दिये गये हैं। फिर भी मुद्रित पाठमें जहांपर अब भी अर्थ या प्रचलित व्याकरणकी दृष्टिसे संदेह उत्पन्न होता है ऐसे कुछ स्थलोंपर यहां पाठान्तर सुझाये जाते हैं-- पृष्ठ पंक्ति
संदिग्ध पाठ
सम्भव पाठ
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सेणाण
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मंडलयाणं
मंडलियाणं
सेणीण णिरक्खदे
णिरिखदे णिण्णयरं
णिण्णयरा, या णिण्णयटुं आदेसमुत्तमुत्तो
आदेसमत्तमुत्तो उस्सेहंगुलमाणं चउ...णयरांणिं उस्सेल पमाणं चउ...णयराणं
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