Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 513
________________ ४४६ ] तिलोयपण्णत्ती [ ४. २४०३ भूमीए मुहं सोहिय उदयहिदं भूमुहाणिचया । मुहमजुदं बे लक्खा भूमी जोयणसहस्समुस्लेहो ॥ २४०३ १०००० | २००००० । १००० | खयवडीण पमाणं एकसयं जोयणाणि उदिजुदं । इच्छाहदहाणिचया खिदिहीणा मुद्दजुदा रुंद || २४०४ १९० । उचरिमजलस्स जोयण उणवीससयाणि सत्तद्दरिदाणिं । खयवड्डीण पमाणं णादव्वं लवणजलणिहिम्मि ।। २४०५ १९०० । ७ पत्तेक्कं दुतढादो पविसिय पणणउदिजेोयणसहस्सा । गाढा तस्स सद्दस्सं एवं सोधिज भंगुलादीणं ॥ २४०६ ९५००० | १०००।१ ९५ दुतादो जलमज्झे पविसिय पणणड दिजोयणसहस्सा । सत्तसयाई उदओ एवं सोहेज्जे अंगुलादीणं ॥ २४०७ ९५००० । ७०० । ७ । ९५० भूमिमेंसे मुखको कम करके उंचाईका भाग देनेपर भूमि की ओर से हानि और मुखकी ओरसे वृद्धिका प्रमाण आता है । यहां मुखका प्रमाण अयुत अर्थात् दश हजार योजन, भूमिका प्रमाण दो लाख योजन और उंचाईका प्रमाण एक हजार योजनमात्र है || २४०३ ॥ मुख १०००० | भूमि २००००० । उत्सेध १००० । उस क्षय-वृद्धिका प्रमाण एकसौ नत्र योजनमात्र है । इच्छासे गुणित हानि-वृद्धि प्रमाणको भूमिमें से कम अथवा मुखमें मिला देने पर विवक्षित स्थानपर विस्तारका प्रमाण जाना जाता है । २४०४ ॥ ( २००००० १०००० ) ÷ १००० = १९० हानि - वृद्धिका प्रमाण । - ७ लवणसमुद्रमें उपरिम ( समतल भूमिके ऊपर स्थित ) जलकी क्षय वृद्धिका प्रमाण सातसे भाजित उन्नीस सौ योजनमात्र है | २४०५ ॥ (२००००० १०००० ) ÷ ७०० = १९०० | दोनों से प्रत्येक किनारेसे पंचानबै हजार योजन प्रवेश करनेपर उसकी गहराई एक हजार योजनमात्र है । इसीप्रकार अंगुलादिकको शोध लेना चाहिये || २४०६॥ १०००० ९५००० | १००० । ५ 1 ९५०००० दोनों तटोंसे जलके मध्य में पंचानबै हजार योजन प्रमाण प्रवेश करने पर सातसौ योजन - मात्र उंचाई है । इसीप्रकार अंगुलादिकों को शोध लेना चाहिये ।। २४०७ ॥ 1 Jain Education International ९५००० | ७०० | १ द ब ९६. २ ब सोहअ m ३ द ब ८५०. ७०० = ९५००० For Private & Personal Use Only 1 www.jainelibrary.org

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