Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 511
________________ ४४४ ] तिलोयपण्णत्ती [ ४. २३८६ सरियाओ जेत्तियाभो चेट्टंते तेत्तियाणि कुंडाणि । विषखादाओ ताओ नियणियकुंडाणे णामेहिं ॥ २३८६ तरदेवा बहुओ नियणिय कुंडाण णामविदिदाओ । पल्लाउपमाणाभो णिवसंती ताण दिव्वगिरिभवणे ॥ २३८७ जेत्तिय कुंडा जेत्तिय सरियाओ जेन्तियाओ वणसंडा । जेत्तिय सुरणयरीओ जेत्तिय जिणणाहभवणाणि ॥ २३८८ जेत्तिय विज्जाद्दरसेढियाओ जेत्तियाओ पुरियाभो । अज्जाखंडे जेत्तिय णयरीओ जेत्तियद्दिदहा ॥ २३८९ वेदीओ तेत्तियाभो णियणियजोग्गाओ ताण पत्तेक्कं । जोयणदलमुच्छेहो रुंदा चावाणि पंचसया || २३९० १ | दंड ५०० । २ वरि विलेसो एसो देवारण्णस्स भूदरण्णस्स । जोयणमेकं उदभ' दंडसहस्सं च वित्थारो ॥ २३९१ कुंडवणसंडसरियासुरणयरीसेलतोरणद्दारा । विज्जाहरवरसेढीणयरजाखंडणयरीभो ॥ २३९२ दहपंचयपुण्वावर विदेहगामादिसम्मलीरुक्खा । जेत्तियमेत्ता जंबूरुक्खाईं य तेत्तिया जिणणिकेदा ॥ २३९३ छक्कुलसेला सन्त्रे विजयड्डा होंति तीस चउजुत्ता । सोलस वक्खारगिरी वारणदंताइ चत्तारो ॥ २३९४ ६ । ३४ । १६ । ४ । तह अट्ठ दिग्गइंदा णाभिगिरिंदा हवंति चत्तारि । चोत्तीस वसहसेला कंचणसेला सयाण दुवे ॥ २३९५ ८ । ४ । ३४ । २०० । जितनी नदियां हैं उतने ही कुण्ड भी स्थित हैं । वे नदियां अपने अपने कुण्डों के नामों से विख्यात हैं || २३८६ ॥ अपने · कुण्डों के नामोंसे विदित बहुतसे व्यन्तरदेव एक पल्यप्रमाण आयुसे सहित होते हुए उन कुण्डों के दिव्य गिरिभवनमें निवास करते हैं ॥ २३८७ ॥ जितने कुण्ड, जितनी नदियां, जितने वनसमूह, जितनी देवनगरियां, जितने जिनेन्द्रभवन, जितनी विद्याधर श्रेणियां, जितने नगर, आर्यखण्डोंकी जितनी नगरियां, जितने पर्वत और जितने द्रह हैं, उनमेंसे प्रत्येकके अपने अपने योग्य उतनी ही वेदियां ह । इन वेदियोंकी उंचाई आधा योजन और विस्तार पांचसौ धनुषप्रमाण है ।। २३८८-२३९० ॥ वेदियोंकी उंचाईयो । विस्तार ५०० धनुष । विशेष यह है कि देवारण्य और भूतारण्यकी जो वेदियां हैं, उनकी उंचाई एक योजन व विस्तार एक हजार धनुषप्रमाण है || २३९१ ॥ कुण्ड, वनसमूह, नदियां, देवनगरियां, पर्वत, तोरणद्वार, विद्याधरश्रेणियोंके नगर, आर्यखण्डोंकी नगरियां, द्रहपंचक ( पांच पांच द्रह ), पूर्वापरविदेहों के ग्रामादिक, शाल्मलीवृक्ष और जम्बूवृक्ष जितने हैं उतने ही जिनभवन भी हैं ।। २३९२–२३९३ ॥ जम्बूद्वीप में सच कुलपर्वत छह, विजयार्द्ध चौंतीस, वक्षारगिरि सोलह और गजदन्त चार हैं || २३९४ ॥ कुलशैल ६ | विजयार्ध ३४ । वक्षारगिरि १६ । गजदन्त पर्वत ४ । दिग्गजेन्द्र पर्वत आठ, नाभिगिरीन्द्र चार, वृषभशैल चौंतीस तथा कांचनशैल दोसौ हैं || २३९५ ॥ दिग्गजेन्द्र ८ | नाभिगिरि ४ । वृषभशैल ३४ | कांचनशैल २०० । १ द ब कुंडाणि २ द ब शिवसंताण. ३ द ब सढियाओ ताणं च ४ द उदयो ५ द ब दुवी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598